किसका राजस्थान

30 मार्च 2010, 12:43 hrs IST
 राजस्थान पत्रिका
सुना आपने! आज राजस्थान दिवस है। राज्य के सभी सरकारी कार्यालय, अफसर एक उत्सव के मूड में होंगे। समारोह उन सभी शहरों में भी आयोजित होंगे, जहां राजस्थानियों की बहुलता है। रणबांकुरों का प्रदेश जो ठहरा। कोई एक बच्चा भी यह पूछ ले कि कौन-सा राजस्थान और किसका राजस्थान तो मेरी शर्त है कि आप में से अधिकांश इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाएंगे। क्योंकि राजस्थान आज किसी के जहन में है ही नहीं। जिन नेताओं को जनप्रतिनिधि के रू प में चुनकर जनता कानून बनाने को भेजती है, कानूनों को लागू करने को भेजती है, वे तो पूर्ण निष्ठा और बेशर्मी से तबादला कराने में व्यस्त हो जाते हैं। जिस रेगिस्तान को हम वरदान बना सकते थे, साठ साल से उसे अभिशाप की तरह ढो रहे हैं। कुदरत ने हमें जो दिया है उसका लाभ भी जनता तक नहीं पहुंचा पा रहे। सौर ऊर्जा इसका उदाहरण है। साठ साल में दोहन किया होता तो आज दूसरे राज्यों को भी देने की स्थिति में होते। दृष्टि और अपनेपन का अभाव निरंतर बढता ही जा रहा है। कोई भी सरकार और कोई भी राजनेता हो, वह कभी यह बताने की स्थिति में ही नहीं होता कि इस साल क्या किया और अगले साल क्या करेगाक् पिछले साठ साल का इतिहास इस बात की साक्षी दे रहा है कि हमने अपने नारों के सहारे वोट की राजनीति तो चलाई है, किन्तु राजस्थान को किसी भी पार्टी ने याद नहीं रखा। सत्ता में आते ही राजस्थान सिकुडकर मेरे परिवार तक रह जाता है। भ्रष्टाचार, अपराध, मादक द्रव्यों की तस्करी, भू-माफिया जैसे मामलों में तो जरू र हमने महारथ हासिल की है, किन्तु जनता के हितों से जुडे किसी एक भी विभाग में कोई कीर्तिमान नहीं बनाया। बल्कि पिछडते ही जा रहे हैं। पूरा का पूरा बजट ऊपरवाले खा रहे हैं। उनको कहां याद है कि उनका कोई दायित्व इस माटी के लिए भी है। किसी को भी याद नहीं आता। अफसर तो वैसे भी लोगों से जुडे नहीं रहते। शिक्षा में देश भक्ति, इतिहास, भूगोल आदि सब कुछ बाहर कर दिया। आदमी को भी बाहर कर दिया। मंत्रियों को राज्य की सम्पूर्ण तस्वीर पता नहीं। अफसरों के भरोसे पांच साल काट लेते हैं। साठ साल की उपलब्धि यह है कि हमने जाति और सम्प्रदाय के नाम पर राजस्थान के टुकडे-टुकडे कर दिए ताकि कभी कोई एक होकर राजस्थान की बात ही नहीं कर सके। हर समूह को लगता है कि वही सबसे ज्यादा दबा है। जबकि दो समूहों में जब भी टकराव होता है तो लगता है कि कोई तीसरा समूह राज्य में है ही नहीं।
अन्य प्रदेशों को भी देखें। कैसे केरल शिक्षा में अपना सर्वोच्च स्थान बना सका, गुजरात और कर्नाटक की प्रगति पर कोई दृष्टि डाले। भ्रष्टाचार वहां भी होगा, किन्तु कुछ प्रशंसा करने लायक काम भी हुआ है। हम यह तो नहीं कहते कि बाल ठाकरे की तरह 'मराठी' राग चलाओ, किन्तु यह तो उम्मीद करते हैं कि रणबांकुरों की धरती पर महिलाएं सुरक्षित घूम सकें। शिक्षा, चिकित्सा, जल, सडक, बिजली जैसी साधारण सुविधाएं बिना किसी बहानेबाजी के हर व्यक्ति को उपलब्ध हो सके। महाराणा प्रताप और मीरा बाई के नाम को लजाने के कार्य तो सरकार न करे।
आज हर बच्चा अपने कॅरियर की चिन्ता में व्यस्त है। इसके आगे उसे कुछ नजर नहीं आता। उसे रिश्तेदारों से मिलने का समय नहीं है। कुछ समय मिलता भी है तो इंटरनेट पर अपना भविष्य ढूंढता है (राजस्थान में नहीं)। उसके पास समाज/प्रदेश की चिंता करने का समय भी नहीं है। नेता के पास भी नहीं, अफसर के पास भी नहीं। जनता तो सरकार को चुनकर मुक्त हो जाती है। इसी विश्वास के साथ कि वह पांच साल में कुछ करेगी जरू र। इसी आस में साठ साल निकल गए। राजस्थान की ओर कोई नहीं देख रहाक् फिर राजस्थान दिवस समारोह किधर ले जाएंगे। आने वाला कल, उन्हीं लोगों के हाथ में होगा जो स्वयं को राजस्थान का मानकर इसके विकास के लिए संकल्पित होंगे। बाकी सब अपना-अपना पेट भर-भरकर चले जाएंगे। नई पीढी को, अपने को राजस्थान का प्रतिनिधि मानकर यह संकल्प लेना चाहिए कि जो राजस्थान के हितों के खिलाफ काम करे, उसे अपराधी मानकर उसके साथ वैसा ही व्यवहार करे। राजस्थान एक संकल्प है। वही हम सबका संकल्प होना चाहिए।

गुलाब कोठारी

कोई टिप्पणी नहीं: