सर्द रात में भी तड़के तक बहता रहा काव्य रस

भास्कर न्यूज त्न निम्बाहेड़ा

अभा साहित्य परिषद द्वारा उपेंद्र चतुर्वेदी की स्मृति में आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों ने काव्य के विविध रस से श्रोताओं को सर्द रात में तड़के तक बांधे रखा।

कवि सम्मेलन का आगाज लता सोनी ने सरस्वती वंदना से किया। राजेंद्र गोपाल व्यास ने मेरे रथ को संभालो सांवरा मैं माया से भया बावरा सुनाई। राजेंद्र विद्रोही ने शरणार्थियों पर चिंता प्रकट करते हुए कहा फरिश्ते भी हो तो पूछ कर आए, ये जन्नत नहीं हमारा वतन है दोस्तों। कन्या भू्रण हत्या पर कहा तुम आज कोख में ही कत्ल कर रहे हो बेटियां, बड़े नसीब से घरों में आती है बेटियां। लता सोनी ने प्यार उपजाती हूं, नफरत को दफन करती हूं कविता सुनाई। श्याम अंगारा ने अफजल को फांसी नहीं देना भारत मां को गाली है कविता सुनाई। राजेंद्र शर्मा ने राजनीति में जूतें चलने पर व्यंग्य किया, रमेश शर्मा ने क्या लिखते रहते हो यूं ही चांद की बातें करते हो कविता से प्रेम रस बहाया। अशोक चारण ने कहा दिल्ली अमेरिका के आगे मुन्नी बनकर नाच रही है, श्याम पाराशर ने बीमा एजेंट व बाल्या की बाई के माध्यम से श्रोताओं को लोटपोट कर दिया। राधेश्याम मेवाड़ी ने राजस्थानी वीर गाथा पेश की। अमृत वाणी ने कंजूस व मेढक कविता के माध्यम से खूब हंसाया। सूत्रधार शांति तूफान थे। मुख्य अतिथि सुरेंद्र बोरदिया, विशिष्ट अतिथि प्रधान गोपाललाल आंजना, मनोहर वीराणी, ललित भाई शारदा, रामलाल आंजना थे। अध्यक्षता अशोक नवलखा ने की। संयोजक डॉ. रवींद्रकुमार उपाध्याय ने आभार जताया।

तिरंगे पर शहीदों की अमर पहचान लिखता हूं

निकुंभ त्न नाकोड़ा मित्र मंडल द्वारा निकुंभ चौराहा पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें राजस्थान व मप्र के कवियों ने हास्य, वीर व श्रृंगार रस की कविताओं से श्रोताओं को आनंदित किया। कवयित्री साबिया असर भोपाल ने आज तेरे शहर में नई हूं, कल पुरानी होकर चली जाऊंगी गीत सुनाया, वाजिद अली वाजिद ने वीर रस की कविता वतन का मान रखता हूं, वतन की शान लिखता हूं। तिरंगे पर शहीदों की अमर पहचान लिखता हूं सुनाकर दाद बटोरी। आकाश एक्सा विजयनगर में मेरी बीवी पड़ोसी के संग भाग गई, मेरी तो किस्मत ही जाग गई, कुंवारा कब तक रहूं अब तो शादी कराओ, भारतसिंह गुर्जर रतलाम ने अन्ना दम है तुम्हारी बात में, हिंदू-मुस्लिम सब तुम्हारे साथ है सुनाई। सुरेश बैरागी मंदसौर ने दिल की गहराइयों में गम ना रहे दरमियां अपने बाकी मरहम ना रहे, एक हो जाए गंगा-जमुना की तरह, तुम भी तुम ना रहो हम भी हम ना रहे सुनाई। कवयित्री गायत्री सरगम भीलवाड़ा ने ये जमीं मिल गई आसमां मिल गया, तुम मुझे क्या मिले यूं लगा खुदा ही मिल गया सुनाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। संपत सुरीला कांकरोली ने छोटी-छोटी पैरोडियां सुनाई। संचालन रशीद निर्मोही ने किया।


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