खाटू श्याम जी यात्रा वृतांत – 12 अगस्त 2025

 12 अगस्त 2025 का दिन हमारी पूरी Indian Architect टीम के लिए बेहद खास रहा। यह वह दिन था जब हम सभी ने एक साथ खाटू श्याम जी के पावन धाम की यात्रा की और वहां के दिव्य दरबार में हाजिरी लगाई।

हमारे मार्गदर्शक और इस यात्रा के प्रेरणास्रोत श्री भारत सोनी जी थे, जिनके नेतृत्व में पूरी टीम ने यह पवित्र सफर तय किया। यात्रा में हमारे साथ डॉ. चंद्रशेखर चंगेरियाप्रकाश कुमावतदिलीप लोढ़ाहर्षित जिंगरअर्जुन जनवाराम रतन कुमावतअभय बुनकरसंदीप बुनकरदीपक मेहतादीपेन्द्र, और टीम की बहनें तनिशा कुमावत व सोनू चुंडावत शामिल रहे।

यात्रा की शुरुआत

रात के समय हम सभी खाटू श्याम जी के प्रवेश द्वार (भव्य श्याम द्वार) पर एकत्रित हुए। रोशनी से सजी यह अद्भुत वास्तुकला मानो हमारा स्वागत कर रही थी। टीम ने यहां समूह फोटो खिंचवाए, जिनमें सभी के चेहरे पर यात्रा की खुशी साफ झलक रही थी।

मंदिर की ओर बढ़ते कदम

मंदिर परिसर में प्रवेश करने के लिए हम कतार में लगे। सबके हाथों में एक-एक गुलाब का फूल था, जिसे हम श्याम बाबा के चरणों में अर्पित करने वाले थे। कतार धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी और साथ-साथ “जय श्री श्याम” के जयकारे गूंज रहे थे। भीड़ के बीच भी सभी के चेहरों पर श्रद्धा और उत्साह था।

दरबार की दिव्यता

जब हम गर्भगृह के पास पहुंचे, तो श्याम बाबा की मनमोहक छवि ने मन को शांति और आनंद से भर दिया। भक्तों की भीड़, ढोल-नगाड़ों की आवाज और श्याम बाबा के दरबार की भव्यता—सब कुछ शब्दों से परे था। हर किसी ने अपनी-अपनी मनोकामनाएं श्याम बाबा के चरणों में रखीं।

टीम की एकजुटता और यादें

पूरी यात्रा के दौरान सभी ने एक-दूसरे का साथ निभाया। चाहे फोटो खिंचवाना हो, कतार में समय बिताना हो या प्रसाद लेना—हर पल में टीम भावना और अपनापन नजर आया। यह सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं बल्कि हमारी टीम के रिश्तों को और मजबूत करने वाला अनुभव भी रहा।

यात्रा के अंत में सभी के मन में एक ही भाव था—“श्याम बाबा, अगली बार फिर बुलाना।”

पोरबंदर यात्रा: समुद्र, इतिहास और संस्कृति की एक यादगार कहानी

1 अगस्त 2025: सफर की शुरुआत

सुबह सोमनाथ के सर्षण करने के बाद मे मैं पोरबंदर के लिए निकल पड़ा। रास्ते में गुजरात की मिट्टी की खुशबू अरब सागर से आती लहरों और खेतों की हरियाली ने मन को ताज़गी दी। छोटे-छोटे गाँव और ताज़ी हवा ने सफर को और खूबसूरत बना दिया। जैसे-जैसे दूरी घटती गई, समुंदर की नमीयुक्त हवा आने लगी और नमक की हल्की-सी खुशबू भी महसूस हुई।  

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समुद्र के किनारे – लहरों से बातें

पोरबंदर पहुंचकर सबसे पहले मैं समुद्र तट पर गया। वहाँ की अरब सागर की लहरें दूर से आतीं, किनारे से टकराकर वापस लौट जातीं। उनकी आवाज़ सुनकर मन को शांति मिली। मैंने सोचा कि ये लहरें कितनी पुरानी कहानियाँ समेटे चल रही होंगी। कुछ देर तट पर खड़े होकर मैं ठंडी हवा और लहरों की गूँज का आनंद लेता रहा।  

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शेरों का शहर – पोरबंदर की गलियाँ

समुद्र के बाद मैं शहर की ओर बढ़ा जिसे लोग “शेरों का शहर” कहते हैं। यहाँ की गलियाँ संकरी हैं, लेकिन हर मोड़ पर इतिहास दिखता है। मैंने पुरानी हवेलियाँ देखीं जिनमें खूबसूरत नक्काशी और मजबूत पत्थर के दरवाजे थे। सौ साल से भी पुरानी यह इमारतें आज भी मजबूती से खड़ी हैं। इन्हें देख कर गुजराती शिल्पकला की प्रशंसा हुई।  

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गांधी चौक – इतिहास के बीच खड़ा प्रतीक

इसके बाद मैं गांधी चौक गया जहाँ महात्मा गांधी की मूर्ति लगी है। चौक के चारों ओर पुरानी इमारतें और लोग घूमते दिखे। मैंने पास के छोटे से पार्क में कुछ समय बैठकर वातावरण का आनंद लिया। बच्चे, बूढ़े और पर्यटक सभी आदर से इस जगह को देखते हैं। यहाँ खड़े होकर मुझे महसूस हुआ कि अतीत और वर्तमान दोनों साथ-साथ मौजूद हैं।  

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सुदामा जी का मंदिर – सुदामापुरी की पहचान

गांधी चौक से थोड़ी दूर चलकर मैं सुदामा जी के मंदिर पहुँचा। मान्यता है कि पोरबंदर को पहले सुदामापुरी कहते थे। मंदिर का मुख्य द्वार भव्य है और अंदर गए ही मन को शांति मिलती है। संगमरमर के स्तंभों पर बनी नक्काशी और मंदिर में बजते भजन आत्मा को छू लेते हैं। मैंने कुछ देर मंदिर प्रांगण में बैठकर सुदामा और कृष्ण की मित्रता की कहानियाँ याद कीं।  

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ऐतिहासिक रेस्टोरेंट में गुजराती स्वाद

मंदिर दर्शन के बाद भूख लगी तो पास के एक पुराने रेस्टोरेंट में गया। वहाँ का माहौल पुराने जमाने जैसा था, लकड़ी की मेज़-कुर्सियाँ और दीवारों पर लगे पुराने फोटो। मैंने गुजराती थाली मंगाई जिसमें ढोकला, फाफड़ा, कढ़ी, उंधियु, भाखरी, खमन, दाल, अचार, चटनी और श्रीखंड था। हर व्यंजन में मसालों की संतुलन और मिठास का अच्छा मेल था। रसोइये ने बताया कि उनका परिवार तीन पीढ़ियों से यह रेस्टोरेंट चला रहा है।  

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यात्रा का सार

पोरबंदर की यह एक दिन की यात्रा मेरे लिए खास रही। समुद्र की लहरें, पुरानी हवेलियाँ, गांधी चौक, सुदामा जी का मंदिर और गुजराती थाली—हर अनुभव अनोखा था। यहाँ की मिट्टी में इतिहास बसा है और लोग भी मिलनसार हैं। पोरबंदर सिर्फ एक शहर नहीं, एक यादगार अनुभव है। जब भी समुंदर की हवाएँ या गुजराती स्वाद याद आएगा, यह दिन फिर से ताज़ा हो उठेगा।