
इनकी कविताएं श्रीकृष्ण की शाश्वत मुस्कान की तरह हैं जो ना तो कभी पूर्ण विराम लेती है ना कभी किसी के अन्तर्मन को ठेस पहुंचाती हैं । अमृत ’वाणी’ द्वारा रचित लगभग छोटी-बड़ी 18-20 पुस्तकों में यह कुुण्डली काव्य राष्ट्रीय कार्यक्रम को अपनी मंजिल तक पहुंचाने में हर पाठक को बेशक मददगारके रूप में महसूस हो रही है । सन् 2001 वाली पीछली राष्ट्रीय जनगणना में भी आपने अपनी कविताओं द्वारा जनमानस के राष्ट्रीय चिंतन को अधिकाधिक सुस्पष्ट एवं अनुकरणीय बनाया था ।
वैसे तो भारत के महारजिस्ट्रार जनगणना आयुक्त का कार्यालय गृह मंत्रालय ,भारत सरकार नई दिल्ली द्वारा मुद्रित एवं प्रकाशित दोनों पुस्तकें ही पूर्णतः प्रामाणिक अक्षरस अनुकरणीय एवं श्लाघनीय हैं फिर भी अमृत ’वाणी’ की छोटी-छोटी कविताएं पर्यवेक्षक ,प्रगणक एवं समस्त उत्तरदाताओं के लिए एक प्रभावी उत्प्रेरक की भूमिका सा सफल निर्वहन अवश्य कर रही हैं ।
अमृत ’वाणी’ सृजनशील रहते हुए शतायु होएं।