![[miniture art copy[3].jpg]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbm12bhfs9O7LrM2CMwYM1dd61UTN3a2bDG-ufj_kVJgaVMfJYpTI4o5srvtZSAf_vnEXYONrMgbugh_dbmLl5ETqUl_rX42vn1kcDUtwKQ0L21vJU2zslfKHMcN7sVJSkiNoWaNCGaWr_/s1600/miniture+art+copy%5B3%5D.jpg)
विश्वकर्मा
देव विश्वकर्मा सुनो, हें प्रथम आर्किटेक्ट ।
निर्माण-कार्य की रची , सुन्दर-सुन्दर टेक्ट ।।
सुन्दर - सुन्दर टेक्ट , रचि आप अमरावती ।
आत्मज प्रभासवसु , मामा गुरु बृहस्पति ।।
कह `वाणी´ कविराज, आपने रची द्वारिका ।
सब गांवन में जाय , देव फिर रचो द्वारिका ।।
शब्दार्थ : विश्वकर्मा = निर्माण कार्य के आदि देव (देवताओं के मुख्य अभियंता) , आिर्कटेक्ट = वास्तु-शास्त्री,टेक्ट = तरकीब, गूढ रहस्य, अमरावती = इन्द्रपुरी, आत्मज = पिता, बृहस्पति = देवताओं के गुरु
भावार्थ : वास्तुशास्त्र के आदि गुरु विश्वकर्मा एवं मय हुए हैं। मय दानव संस्कृति के तो विश्वकर्मा देव संस्कृति के प्रथम वास्तुशास्त्री थे। आपने लौकिक व दिव्य ज्ञान के द्वारा देवाधिपति इन्द्र के लिये सुन्दर अमरावती का निर्माण कर स्वर्गलोक की शोभा बढ़ाई। पारिवारिक संबंधोंं में आप प्रभासवसु के पुत्र, देवगुरु बृहस्पति के भांजे एवं सृष्टि के प्रथम सम्राट राजा पृथु के समकालीन थे।
`वाणी´ कविराज कहते हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण के लिए आपने द्वारिका की रचना कर इस मृत्युलोक को भी एक अनुपम अलौकिक उपहार दिया। अंत में कवि निवेदन करते हैं कि हे प्रभु विश्

From:-
भारतीय वास्तु शास्त्र
अमृत 'वाणी'