महाराणा प्रताप :- कवि अमृत 'वाणी'

    बाबर री फौजा रा दाँत खाटा करणवाळा, रणभूमि में अस्सी घाव हुया पचे भी युद्ध करण रो हौंसलों राखण वाला ऐतिहासिक रण बांकुरा, राणा सांगा रा पोता, राणा उदयसिंह रा लाडला कुँवर, जैवन्ती बाई रा आंख्या रा तारा, शक्ति का अवतार शक्तिसिंह रा मोट्योड़ा भाई, एकलिंग नाथ रा दीवान, ‘मेवाड़ी माटी रे कण-कण मांय, लाखांे लाखों होना री मोरा जेड़ा, युगां युगां तांई चमकण वाळा, शौर्य रा सूरज, लाखों हीरा मांही चमकण वाला वीर शिरोमणि कोहिनूर, हल्दीघाटी ने वीरां रो महातीरथ बणावण वाला, चेटक रा असवार, महाराणी अजबदे रा अमर सुहाग, छोट्योड़ा अमरसिंह री मोटी चिंता करण वाळा, जन-जन रा लाड़ला, दुनिया रा इतिहास में लोई रा भर्योड़ा स्वाभिमानी दिवळा सूं आन-मान-शान रो अमर उजाळो करण वाळा महाराणा प्रताप री आशीषां लेवण खातर आकी दुनिया रा सांचा स्वाभिमानी देशभक्त, आज बारम्बार शीष झुकावे है।
    महाराणा प्रताप अतरो विशाल व्यक्तित्व है कि दन-रात आकाश में उड़बा वाळा पखेरू तकात वाका गीत गावे है। आज तांई आपरी गौरव गाथा लिखता लिखता नां तो कवियां री कलमां थाकी ना रावरी गाथा पूरी हुवी।

एक दोहा रे मायने जाण्या, माण्या कविराज अमृत वाणी अणी रहस्य रो वर्णन यूं कर्यो - 

‘‘लव बेटा जो राम रा, जांको सूरज वंश।
सब राणा मेवाड़ रा, सियाराम रा अंश।।

    महाराणा प्रताप एक कालजयी महापुरूष हुया, जांका वीरोचित भावां ने शब्दा में ढाळबो कोई सरल काम कोयने। एक दोहो अर्ज करू -
‘‘लिखती-लिखती थाकगी, ये कलमां कविराज।
तड़के पाछी चालसी, दनड़ो आंथ्यो आज।।

    आज रो टेम रा घणा मिनक दनरात शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक कामां में इतरा व्यस्त अन तनावग्रस्त रेबा लाग ग्या कि जिन्दगानी री घणी खुशियां, सीमटती सीमटती अैय्यां छोटी होगी, यूं लागें जाणें आकाश में उड़ती थकी पतंग रो डोरों सारोई चकरी माथे लपेटा ग्यो।

आज आम आदमी ने भौतिकवाद में मोबाईला रा चमकीला उजाळा सूं दिशा भ्रम वेतो जार्यो है। 

‘‘मरजी आवे जैय्या नाळै,
गलत गेला पे चाले।
मुसीबतां में पड्या पाछे,
आका घरका को जीव बाळै।।


    इणी बास्ते प्रताप जयंन्ती रा महोत्सव पे मैं आखरी में यो केबो छाऊं कि भक्ति भाव, समाज सेवा, दीन-दुखियां री सेवा, आध्यात्मिक साधना जेड़ा अनमोल गेणा-घाटा सूं मनक जमारा ने फेरूँ सजावण री बगत आगी है। महाराणा प्रताप रा संघर्षमय जीवन सूं दृढ़ संकल्पवान होवण री शुरूआत करां, अपणा धार्या कामां ने पूरण करां, ता जिन्दगी एड़ा चैखा काम करां के जद इतिहास लिखण री बेला आवे तो एकादि लेण में आपणों भी नाम आवे। आखरी में दो लेणां पढ़बा रो मन होवें -

‘‘जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।
हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।’’


जय हिन्द।

कवि  अमृत 'वाणी'

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