कुछ छायाचित्र

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 कुछ छायाचित्र पोस्ट कर रहा हमारे जिले के होनहार युवा साथी महेंद्र के............
  बहुत मेहनत से छायाकार  हैं: महेंद्र -9829046603..ने तैयार किये है......उन्हें


अपनी राय जरुर दीजिएगा.,ताकी  सफ़र जारी रहे.

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सादर,
माणिक

आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से जुड़ाव

http://maniknaamaa.blogspot.com
http://facebook.com/manikspicmacay
http://twitter.com/manikspicmacay

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''काव्योत्सव''
में 25 मई तक

प्रकृति,बरसात,सावन,आषाड़,धूप,किसान,विरह,जनवाद,दलित
विमर्श,अबला-सबला विमर्श,समाजवाद,विषम समाज विषय पर कवितायें आमंत्रित
है.जिनका प्रकाशन http://apnimaati.blogspot.com पर 1 जून से होगा.
ये आलम आपको बहुत सा प्यार देगा,एक बार इसकी तरफ मुड कर प्यार से देखिएगा.
ऐसे में दिल करता है बस यहीं बस जाऊं.मगर यहाँ रहने वालों का दिल जानता है.कि कितनी मुसीबतें है यहाँ.
ये हरियाली हमारे इलाके में नहीं है क्योंकि हम पेड़ों को रहने ही नहीं देते
ब्रम्पुत्र एक्सप्रेस है,बहुत लम्बी है,कभी कभार ज़िन्दगी भी बहुत लम्बी लगती है.सच है ना.
एक दिन सभी को डूब जाना है.वैसे ये नोर्थ इस्ट भारत की तस्वीर है जो चलती ट्रेन में ली गयी है.


















































अपनी माटी पर ''काव्योत्सव'': कवितायें आमंत्रित हैं

अपनी माटी पर कविता प्रकाशन
पाठक और ब्लॉगर साथियों
नमस्कार,
पतझड़ जारी है,पूरा जेठ आषाड़ बाकी है,बरसाती मौसम भी आयेगा,मगर हाँ सावन की खुशबू भी महकेगी,इसी आलम में याद किया है आपको इस आयोजन के लिए जो आपके सहयोग से ऑनलाइन प्रकाशन का उत्सव बनेगा.आपको ये आमंत्रण भेजते हुए बहुत ख़ुशी है कि हम अपनी माटी ब्लॉग पर ''काव्योत्सव'' का आयोजन कर रहे है. हमने ब्लॉग्गिंग कि दुनिया में बहुत कम समय पहले ही कदम रखा था,मगर हमें बहुत अच्छा सहयोग मिला है. आपके साथ मिलकर ही हम अच्छी और श्रेष्ठ रचनाओं के प्रकाशन का ये जिम्मा ले रहे हैं.आपसे निवेदन है कि यदि आप या आपके सपर्क में कोई कवितानुमा कुछ लिखते हैं,तो कृपया ये सूचना उन तक भी पहुंचाने का कष्ट करिएगा.
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हम रचनाएँ 25 मई 2010 तक स्वीकार करेंगे,सभी कवितायें रचानाकार की स्वयं की लिखी हो,इसका सत्यापन करके रचनाएँ हम तक भेजना होगा.कृपया कवितायें स्तरीय होने पर ही शामिल की जायेगी.रचनाएँ प्रकाशित और अप्रकाशित हो सकती है.साथ ही सभी प्रकार के अधिकार रचनाकार के स्वयं के होंगे. किसी भी प्रकार के विवाद की स्तिथि में रचनाओं में लिखे विचारों को लेकर रचनाकार ही स्वयं जिम्मेदार होंगे.
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रचनाओं का प्रकाशन 1 जून 2010 से अपनी माटी ब्लॉग पर नियमित रूप से रोजाना होगा.ये सिलसिला बरसात ऋतु के समापन तक चलेगा. सिलसिले की सीमा आप लोगों के द्वारा भेजी जाने वाले रचनाओं की संख्या पर भी निर्भर करेगी.. मगर हम आपसे बहुत आशा लगाए बैठे हैं.
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रचनाओं के विषय वैसे बांधे नहीं जा सकते हैं,फिर भी.कुछ निवेदित हैं
  • प्रकृति
  • बरसात
  • सावन
  • आषाड़
  • धूप
  • किसान
  • विरह
  • जनवाद
  • दलित विमर्श
  • अबला-सबला विमर्श
  • समाजवाद
  • विषम समाज
बाकी आपके विवेक पर निर्भर रहेगा.बस राजनैतिक रूप से विवादास्पद रचनाओं के चयन से हम बचेंगे.
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रचनाये हिंदी के किसी फॉण्ट में हों या फिर यूनिकोड में भी बदल कर भेज सकते हैं.रचनाएँ भेजने का ई-मेल पता है. manikspicmacay@gmail.com
रचनाओं के साथ रचनाकार के जीवन से जुड़ा संक्षिप्त परिचय और एक ठीक-ठाक फोटो भी भेजिएगा.
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आपकी रचानाओं का इन्तजार आरम्भ हो गया है.आपके सहयोग पर ही हमारा ये प्रयास आगे की गति के लिए प्रेरणा बनेगा.

सम्पादन मंडल के लिए

सन्डे का विडियो


इस बार हम सन्डे के विडियो में मध्य प्रदेश की नर्मदा नदी जो होशंगाबाद के आसपास बहती हुयी है,का है. इस गीत में,बहुत मेहनत के साथ अशोक जमनानी ने गीत लिखा है और नमन तिवारी ने गाया है. इस तरह के गीत जो ज़मीं से जुड़े भी लगते है. और अपनी संस्कृति को बढावा देने वाले भी हो,अच्छे लगते है.आज आपकी नज़र कर रहे है.

राजस्थानी रचनाकारां सारू सूचना

राजस्थानी रचनाकारां सारू सूचना

राजस्थानी जन-जन ताईं पूगै इण सारू बोधि प्रकाशन पुस्तक पर्व योजना रै तै'त 'राजस्थानी साहित्य माळा' छापण री तेवड़ी है। इण योजना में राजस्थानी रा दस रचनाकरां री एक-एक पोथी रो सैट ऐकै साथै प्रकाशित होय सी। ऐ दस पोथ्यां कहाणी, नाटक, एकांकी, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य, रेखाचित्र, निबंध, कविता, गज़ल आद विधा में होय सी। साफ है एक विधा में एक टाळवीं पोथी। कुल दस पोथी रै एक सैट री कीमत 100/- (सौ रिपिया) होय सी। इण पोथी माळा रो संयोजन राजस्थानी रा चावा साहित्यकार श्री ओम पुरोहित 'कागद' नै थरपियो है।

योजना में सामल होवण सारू 15 मई, 2010 तक इण ठिकाणै माथै रुख जोड़ो-

श्री ओम पुरोहित 'कागद'
24, दुर्गा कॉलोनी, हनुमानगढ़ संगम-335512
खूंजै रो खुणखुणियो : 9414380571

बोधि प्रकाशन
एफ-77, सेक्टर-9,
रोड नं.-11, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया,
बाईस गोदाम, जयपुर

सन्डे का विडियो

राष्ट्रीय एकता जिंदाबाद

वक़्त के साथ जहां खेमेबाज़ी चल रही है. ज़हर घोलने वालो की ज़मात बढ़ रही हैं ऐसे में आओ मिलकर एक बार फिर से गायें रोजाना ये गीत.जिसमे हमारे देश का गुणगान है,मिट्टी का गान है.अपना-अपना राग आलापना कुछ देर छोड़,कुछ सामलाती बात करें.माणिक



राजस्थानी को सोवियत रूस ने समझा, हमने नहीं

Bhaskar News
First Published 02:15[IST](15/04/2010)
Last Updated 02:15[IST](15/04/2010)
जयपुर. राजस्थानी भाषा के गौरव और समृद्धि की अहमियत को सोवियत रूस जैसे बड़े देश तक ने समझा लेकिन हम नहीं समझ पाए। तत्कालीन सोवियत रूस के लेखक बोरिस आई क्लूयेव सहित कई विद्वानों ने 70 के दशक में राजस्थानी भाषा पर शोध कर इसके समग्र स्वरूप को मान्यता देने की वकालत की थी।
बोरिस ने राजस्थानी की विभिन्न बोलियों पर अपने शोध में कहा था कि राजस्थान में भाषा स्थिति इतनी जटिल नहीं है जितनी पहली बार में दिखाई देती है। इसके अलावा राजस्थानी भाषा की आंचलिक बोलियों के आधार पर राजस्थानी के स्वरूप को बिगाड़ने और इसमें विभेद पैदा करने की कोशिशों को भी गलत बताया है।

क्लूयेव ने स्वतंत्र भारत

जातीय तथा भाषाई समस्या विषय पर शोध शुरू किया तो राजस्थानी ने उन्हें बेहद प्रभावित किया। उन्होंने राजस्थान में संजाति—भाषायी प्रक्रियाएं शोध में साफ लिखा, राजस्थानी की विभिन्न बोलियों में से ज्यादातर एक ही बोली समूह की हैं। इन बोलियों की पुरानी साहित्यिक परंपराएं हैं। प्राचीन मरू भाषा से डिंगल के साहित्य और से अब तक राजस्थानी ने साहित्यिक भाषा के प्रमुख पड़ाव तय किए हैं।
1961 की भाषाई जनगणना के अनुसार राजस्थानी को अपनी मातृभाषा बताने वालों की संख्या 1.50 करोड़ थी। राजस्थानी बोलने वालों की राजस्थान के बाहर भी अच्छी खासी तादाद है। संख्या के हिसाब से राजस्थानी देश की 12वीं प्रमुख भाषा है और 1961 की जनगणना में भाषाई गणना के हिसाब से भारत की प्रमुख भाषाओं के कम में इसे 12वें पायदान पर रखा गया। इसमें राजस्थान में रहने वाले 80 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा राजस्थानी बताई गई है।

रूसी शोध में भी प्रमुख था मान्यता का मुद्दा


राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग का जिक्र रूसी विद्वान के शोध में भी था। राजस्थानी को 60 के दशक से राजभाषा की मान्यता देने की मांग उठाई जा रही है।

करणीसिंह ने लोकसभा में रखा था विधेयक


बीकानेर सांसद और पूर्व राजा करणीसिंह ने 1980 में राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए एक विधेयक लोकसभा में विचारार्थ रखा था। उस समय इस विधेयक पर बहस हुई और लोकसभा में यह 92 के विरुद्ध 38 मतों से गिर गया। तब से लेकर राजस्थानी को मान्यता का मुद्दा अभी अनिर्णीत ही है।

राजस्थानी ने लुभाया इन रूसी विद्वानों को

एल.वी. खोखोव : राजस्थान में प्रयुक्त हिंदी और राजस्थानी भाषाएं- सामाजिक तथा वैज्ञानिक अनुसंधान का अनुभव (शोध प्रबंध 1974, मास्को)।
लुई एसेले : भारत के चित्र 1977 (मास्को)

चट्टानों की होड़ करते हौंसले

चट्टानों की होड़ करते हौंसले
किसी ने सच ही कहा है कि हौंसले फ़तह की बुनियाद हुआ करते हैं. बीकानेर जिले के सूंई ग्राम का शिशुपाल सिंह इसकी मिसाल है. बुलंद हौंसलों के धनी शिशुपाल सिंह ने अपने जीवन से आदमी के  जीवट को नई परिभाषा दी है. वर्षों पूर्व एक हादसे में रीढ़ की हड्डी टूट जाने के बावजूद उसने अपने मजबूत इरादों को नहीं टूटने दिया. वाकई उसकी जिन्दादिली को सजदा करने को जी करता है.
उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के रेतीले धोरों के बीच महाजन से २५ किमी दूर बसे सूंई ग्राम का बासिन्दा शिशुपाल सिंह भरी जवानी में एक खतरनाक हादसे का शिकार हो गया. बीस वर्षों पुरानी बात रही होगीं. गांव मे बिजली चली गई. दो दिनों तक नहीं आई. बिजली महकमे के इकलौते  कर्मचारी के भरोसे दस गांवों की बिजली व्यवस्था का जिम्मा था. एसी स्थिति में गांव के लोग ही फ़्यूज वगैरह डाल कर काम चलाते थे. जब दो दिनों तक विभाग का कोई आदमी बिजली की सुध लेने नहीं आया तो ग्रामीणों के कहने पर शिशुपाल सिंह फ़्यूज लगाने के लिए ट्रांसमीटर पर चढ़ा लेकिन करंट के जोरदार झटके से वह जमीन पर गिर पड़ा व उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई. अब शिशुपाल सिंह की उम्र ६५ वर्ष की है. बीते बीस वर्षों से वह लकडी की खाट पर सीधा लेटा है. खुद करवट बदलना भी संभव नहीं है. यद्यपि इस दुर्घटना ने उसके शरीर  को अपंग बना दिया लेकिन उसके विचार अटल-अडिग है.
खाट पर लेटे-लेटे ही शिशुपाल सिंह ने जीने का एसा मकसद तलाश लिया है जो भले चंगे लोग भी नहीं तलाश पाते. शिशुपाल सिंह ने अपने पास एक लाउडस्पीकर मंगा रखा है जिससे वह रोजाना पूरे गांव को अखबार बांच कर सुनाता है. साधन- सुविधाओं से वंचित इस गांव में ४-५ घरों में अखबार आता है, वह भी ११ बजे आने वाली इकलौती बस में, मगर शिशुपाल सिंह के प्रयासों से पूरा गांव देश-दुनिया की सुर्खियां जान जाता है. अखबार पढ़ने का उसका तरीका भी निराला है. समाचार की हैडिंग पढने के बाद शिशुपाल अपने मौलिक अंदाज में उस पर बेबाक विचार भी प्रकट करता है. तभी तो लोग इस अनोखे समाचार-वाचक के न्यूज बुलेटिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. इतना ही नहीं किसी के घर जागरण हो या किसी का पशु खो जाए, गांव वालों को इसकी सूचना शिशुपाल सिंह के जरिये ही पहुंचती है. ग्राम में ग्रामसेवक या पटवारी या टीकाकरण के लिये नर्स के आने की खबर भी शिशुपाल सिंह के रेडियो से ही प्रसारित होती है. ग्राम की जन समस्याओं को भी यह अनोखा पत्रकार मुखरता से उठाता है. टी.आर.पी. के लिए मूल्यों को हाशिए पर डालती आज की मीडिया के लिए शिशुपाल सिंह अनूठा उदाहरण  है,   जो मौन भाव से सामाजिक जागरण का बेहतरीन काम कर रहा हैं.
हालांकि शिशुपाल सिंह के लिए चलना-फ़िरना तो दूर खुद करवट बदलना भी मुम्किन नहीं, मगर उसके चेहरे पर नैराश्य की छाया तक नजर नहीं आती. उसकी आंखों की उत्सुकता, चेहरे की चमक तथा  बात-बात पर खिलखिला कर हंसना उसके चट्टानों सरीखे बुलंद हौंसलों को  बयां करते जान पड़ते हैं 
छाया- लूणाराम वर्मा

जनपद री बोल्यां है मिणियां, माळा राजस्थानी।

समाचार सन्दर्भ- राजस्थानी को बचाना जरूरी
(समाचार पढऩे के लिए क्लिक करें।)

जनपद री बोल्यां है मिणियां,

माळा राजस्थानी।

-सत्यनारायण सोनी, प्राध्यापक-हिन्दी
मंत्रियों और पूर्व मंत्रियों ने अपने बयानों में राजस्थानी को बचाना जरूरी माना है और दबी जुबान में कुछ शंकाएं भी प्रकट की हैं, जो कि पूर्णतया बेमानी और आधारहीन हैं। यह उनकी भाषाई समझ के दिवालिएपन का द्योतक कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी को चिंता है कि अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि राजस्थानी भाषा किसे कहा जाए, क्योंकि हर क्षेत्र में अलग-अलग बोलियां हैं। हम राजस्व मंत्री महोदय को याद दिलवाना चाहते हैं कि बोलियां किसी भी भाषा की समृद्धता की सूचक होती हैं। दुनिया के समस्त भाषाविद यह मानते हैं कि जिस भाषा में जितनी अधिक बोलियां होंगी वह उतनी ही समृद्ध होगी। बिना अंगों के शरीर की तरह से होती है बिन बोलियों के भाषा। भाषा अंगी और बोलियां अंग होती हैं। हिन्दी की अवधी, बघेली, छतीसगढ़ी, ब्रज, बांगरू, खड़ी, कन्नौजी, मैथिली आदि बोलियां ही तो हैं। हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों में अवधी के तुलसी, ब्रज के रसखान और सूर, मैथिली के विद्यापति, सधुक्कड़ी के कबीर आदि गर्व के साथ पढ़ाए जाते हैं। भाषाई विभिन्नता के बावजूद भी प्रेमचंद, हजारी प्रसाद द्विवेदी और फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी के आधुनिक गद्य लेखकों के रूप में प्रसिद्ध हैं। पंजाबी की पोवाधि, भटियाणी, रेचना, सेरायकी, मांझी, दोआबी, अमृतसरी, जलंधरी आदि कितनी ही बोलियां हैं और वह विश्वभर में सम्मानित है। इसी भांति राजस्थानी की मेवाती, मेवाड़ी, हाड़ोती, ढूंढाड़ी, मारवाड़ी, मालवी आदि बोलियों के बावजूद लेखन के स्तर पर एक ही भाषाई रूप प्रचलित है। अंचल विशेष के प्रभाव से कहीं-कहीं विविधता नजर आती है तो वह कमजोरी नहीं भाषा की, खासियत है। साहित्य के लिए यही अनिवार्य शर्त होती है कि उसमें हर स्तर पर लेखक का परिवेश बोलना चाहिए। हम माननीय हेमारामजी से निवेदन करना चाहते हैं कि राजस्थानी भाषा में प्रकाशित होने वाली दर्जन-भर पत्र-पत्रिकाएं अपने घर पर मंगवाएं। ग्यारहवीं से लेकर एम.. तक की पढ़ाई में शामिल राजस्थानी साहित्य की पाठ्यपुस्तकें पढ़कर देखें। बाजार में उपलब्ध राजस्थानी लोकगीतों के केसेट्स ऑडियों-वीडियो सीडी घर पर लाकर कभी फुरसत में सुना करें। और फिर अपना वही सवाल दोहराएं। राजस्थानी के अनुभवी और विद्वान लेखकों ने पाठ्यपुस्तकें ऐसी तैयार की हैं कि उनमें हर विद्यार्थी को अपनेपन की महक आती है। सिंहासन पर बैठकर आदमी अपनी जमीन से कट जाता है और किसी विषय में अल्पज्ञानी होते हुए भी बड़ी-बड़ी डींगें हांकने लगता है।
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री भरतसिंह की कमोबेश यही चिंता है जिसका जवाब ऊपर की पंक्तियों में चुका है, मगर उनके इस बयान से हमें घोर आपत्ति है कि हिन्दी और अंग्रेजी ऐसी भाषाएं हैं जिसे हर क्षेत्र का व्यक्ति सहजता से समझ सकता है। माननीय भरतसिंह जी, आप अपने निर्वाचन क्षेत्र में इन्हीं भाषाओं में वोट क्यों नहीं मांगते? क्योंकि आपकी वोटर-जनता तो इन्हें सहजता से समझती है। घर के शादी-समारोहों, व्रत-त्योहारों और उत्सवों पर भी इन्हीं भाषाओं के गीत गाए जाते होंगे आपके यहां? हाड़ोती के लोग अगर हिन्दी और अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हैं तो घर-परिवार में नहीं। जहां जरूरत हो इनकी वहां किया भी जाना चाहिए। राजस्थानी का सम्मान करने का मतलब किसी अन्य भाषा की अवहेलना नहीं होता, सबसे पहले तो आपको यह समझ लेना चाहिए। हाड़ोती अंचल के बहुत-से आयोजनों में जाने का मौका मिला है। ठेठ हाड़ोती में बातचीत करते हुए देखता रहा हूं और मंचों से बोलते हुए भी सुना है मैंने लोगों को। बहुत-से लेखक मित्रों यथा- अतुल कनक, प्रहलाद सिंह राठौड़, डॉ. शांति भारद्वाज राकेश, गिरधारी लाल मालव आदि से फोन पर बातचीत भी ठेठ राजस्थानी भाषा और बाकायदा उनके हाड़ोती लहजे में होती है। माननीय भरतसिंहजी, हम जानते हैं और इसलिए आपकी प्रशंसा सुन चुके हैं कि आप जनसभाओं को ठेठ हाड़ोती में सम्बोधित करते हैं, फिर आज आपने यह बयान दिया है तो हमें बड़ा अचरज हो रहा है।
पूर्व शिक्षामंत्री कालीचरण सराफ को चिंता है कि राजस्थानी लागू होने से वैश्विकरण के दौर में हम पीछे रह जाएंगे। तो सवाल यह उठता है कि भारत के लगभग हर प्रांत में मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाती है और राजस्थान में नहीं। बताइए वे प्रान्त कितने' पीछे रह गए और राजस्थान के बच्चों से उनकी मातृभाषा छीनकर आपने कितना' आगे निकाल दिया? गांधीजी ने अपने अनुभवों के आधार पर जो लेख लिखे उनमें स्पष्ट किया कि जितनी अंग्रेजी और फारसी बालक अन्य माध्यम से चार साल में सीखता है वही अपनी मातृभाषा के माध्यम से एक बरस में सीख सकता है। वैश्विकरण के दौर में आप बच्चों को अगर अंग्रेजी सिखाना चाहते हैं तो वह मातृभाषा के माध्यम से ही सिखाइए और उसकी सीखने की गति तो देखिए। दुनियाभर के शिक्षाविद कोई अंधेरे में तीर नहीं मार रहे। अपने अनुभवों का निचोड़ पेश किया है उन्होंने। गांधीजी की बात पर गौर फरमाएं- 'मेरी मातृभाषा में कितनी ही खामियां क्यों हो, मैं उससे उसी तरह चिपटा रहूंगा, जिस तरह मां की छाती से। वही मुझे जीवन प्रदान करने वाला दूध दे सकती है।'
और अंत में कवि कन्हैयालाल सेठिया की ये पंक्तियां आप सब के लिए-
मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, वागड़ी,
हाड़ोती, मरुवाणी।
सगळां स्यूं रळ बणी जकी बा
भाषा राजस्थानी।
रवै भरतपुर, अलवर अळघा
आ सोचो क्यां ताणी!
हिन्दी री मां, सखी बिरज री
भाषा राजस्थानी।
जनपद री बोल्यां है मिणियां,
माळा राजस्थानी।

कानांबाती : 09602412124

गलती सुधारने का सुनहरा अवसर

राजस्थान में राजस्थानी ही हो शिक्षा का माध्यम

गलती सुधारने का सुनहरा अवसर

गांधी जी के शब्द- 'जो बालक अपनी मातृभाषा के बजाय दूसरी भाषा
में शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे आत्महत्या ही करते हैं।'
त्रिगुण सेन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार प्रारम्भिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से ही होनी चाहिए। दूसरी ओर राजस्थान के शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल का बचकाना बयान अखबारों में प्रकाशित हुआ है कि फिलहाल राज्य में हिन्दी ही मातृभाषा है। जबकि मां हमें जिस भाषा में दुलारती है, लोरियां सुनाती है, जिस भाषा के संस्कार पाकर हम पलते-बढ़ते हैं, वही हमारी मातृभाषा होती है। मंत्री महोदय के बयान पर तरस आता है और बरबस ही उनके लिए कुछ सवाल जेहन में खड़े हो जाते हैं। माननीय मंत्री महोदय भी इसी राज्य के हैं। क्या उनकी मातृभाषा हिन्दी है? क्या उन्होंने अपनी मां से हिन्दी भाषा में लोरियां सुनीं। हिन्दी में ही उनके घर पर विवाह आदि उत्सवों के गीत गाए जाते हैं? हिन्दी में ही वे वोट मांगते हैं? जनता से संवाद हिन्दी में करते हैं? जिस महानुभव को महज इतना-सा अनुभव नहीं, उन्हें राजस्थान के शिक्षा मंत्री बने रहने का कोई हक नहीं।
    आजादी के पश्चात राजस्थान में शिक्षा के माध्यम के सम्बन्ध में जो गलत निर्णय हुआ उस गलती को सुधारने का अब एक सुनहरा अवसर आया है और राजस्थान की सरकार अगर गांधीजी के विचारों का तनिक भी सम्मान करती है तो प्रदेश में तत्काल मातृभाषा के माध्यम से अनिवार्य शिक्षा का नियम लागू कर देना चाहिए। राजस्थान के शिक्षा-नीति-निर्धारकों को गांधीजी के इन विचारों पर अमल करना चाहिए- 'शिक्षा का माध्यम तो एकदम और हर हालत में बदला जाना चाहिए, और प्रांतीय भाषाओं को उनका वाजिब स्थान मिलना चाहिए। यह जो काबिले-सजा बर्बादी रोज-ब-रोज हो रही है, इसके बजाय तो अस्थाई रूप से अव्यवस्था हो जाना भी मैं पसंद करूंगा।' अपने व्यक्तिगत अनुभव से गांधीजी को यह पक्का विश्वास हो गया था कि शिक्षा जब तक बालक को मातृभाषा के माध्यम से नहीं दी जाती, तब तक बालक की शक्तियों का पूरा विकास करने और उसे अपने समाज के जीवन में पूरी तरह सहयोग देने लायक बनाने का अपना हेतु भलीभांति सिद्ध नहीं कर पाती। भारत कुमारप्पा के संपादन में गांधीजी के विचारों पर आधारित 'शिक्षा का माध्यम' नामक पुस्तिका में उनके शब्द हैं, 'मातृभाषा मनुष्य के विकास के लिए उतनी ही स्वाभाविक है जितना छोटे बच्चे के शरीर के विकास के लिए मां का दूध। बच्चा अपना पहला पाठ अपनी मां से ही सीखता है। इसलिए मैं बच्चों के मानसिक विकास के लिए उन पर मां की भाषा को छोड़कर दूसरी कोई भाषा लादना मातृभूमि के प्रति पाप समझता हूं।' गांधीजी को इस बात का मलाल रहा कि उन्हें प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा गुजराती में नहीं मिली। उन्होंने लिखा कि जितना गणित, रेखागणित, बीजगणित, रसायन शास्त्र और ज्योतिष सीखने में उन्हें चार साल लगे, अंग्रेजी के बजाय गुजराती में पढ़ा होता तो उतना एक ही एक साल में आसानी से सीख लिया होता। यही नहीं गांधीजी ने माना कि गुजराती माध्यम से पढऩे पर उनका गुजराती का शब्दज्ञान समृद्ध हो गया होता और उस ज्ञान का अपने घर में उपयोग किया होता। गांधीजी  ने स्पष्ट कहा कि मातृभाषा के अलावा अन्य माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने वाले बालक और उसके कुटुम्बियों के बीच एक अगम्य खाई निर्मित हो जाती है। 'हरिजन सेवक' और 'यंग इंडिया' नामक पत्रों में गांधीजी ने इस मुद्दे को लेकर अनेक लेख लिखे। मातृभाषा को उन्होंने जीवनदायिनी कहा और उसके सम्मान के लिए हर-सम्भव प्रयास की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा- 'मेरी मातृभाषा में कितनी ही खामियां क्यों न हो, मैं उससे उसी तरह चिपटा रहूंगा, जिस तरह अपनी मां की छाती से। वही मुझे जीवन प्रदान करने वाला दूध दे सकती है।'
    काबिले-गौर बात यह भी है, जिसमें गांधीजी ने लिखा- 'मेरा यह विश्वास है कि राष्ट्र के जो बालक अपनी मातृभाषा के बजाय दूसरी भाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे आत्महत्या ही करते हैं।'  अब सवाल यह उठता है कि हम कब तक अपने बालकों को आत्महत्या की ओर धकेलते रहेंगे? 64 बरस से लगातार मातृभाषा के बजाय अन्य माध्यम से शिक्षा ग्रहण करते रहने के बावजूद भी राजस्थान के लोग अपने मन से अपनी मां-भाषा को विलग नहीं कर पाए हैं तो कोई तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में जाने वाले बच्चे भी खेल-खेल में अगर कोई कविता की पंक्तियां गुनगुनाते हैं तो वह मां-भाषा में ही प्रस्फुटित होती है। राजस्थान के स्कूलों में भले ही पाठ्यपुस्तकों की भाषा राजस्थानी नहीं, मगर शिक्षकों को प्रत्येक विषय पढ़ाने के लिए आज भी मातृभाषा के ठेठ बोलचाल के शब्दों का ही प्रयोग करना पड़ता है। अंग्रेजी के एक शिक्षक ने अपने प्रयोगों के आधार पर पाया कि राजस्थान में अंग्रेजी भाषा का ज्ञान राजस्थानी माध्यम से बड़ी सुगमता और शीघ्रता से दिया जा सकता है। सैद्धांतिक रूप में न सही, हकीकत तो यही है कि राजस्थान में आज व्यावहारिक रूप में हिन्दी विषय का ज्ञान भी राजस्थानी माध्यम से ही करवाना पड़ता है। अपने शिक्षण में मातृभाषा का प्रयोग करने वाले शिक्षक बालकों के हृदय में स्थान बना लेते हैं और उन शिक्षकों से अर्जित ज्ञान बालक के मानस पटल पर स्थाई हो जाता है।
    राहुल सांकृत्यायन ने भी इसी बात को लेकर पुरजोर शब्दों में राजस्थानी की वकालत की थी। उन्होंने कहा- 'शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से ही होनी चाहिए, यदि इस सिद्धांत को मान लिया जाए तो राजस्थान से निरक्षरता हटने में कितनी देर लगे। राजस्थान की जनता बहुत दिनों तक भेड़ों की तरह नहीं हांकी जा सकेगी। इसलिए सबसे पहली आवश्यकता है राजस्थानी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए।'
    राजस्थान के बालकों को राजस्थानी माध्यम से ही शिक्षा दी जानी चाहिए, तभी वह अधिक कारगर सिद्ध हो सकती है। राजस्थान में बसने वाले अन्य भाषी लोगों पर भी हम इसे थोपे जाने की वकालत नहीं करते। पंजाबी, सिंधी, गुजराती या हिन्दी आदि माध्यमों से शिक्षा ग्रहण करने के इच्छुक बालकों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने की सुविधा भी मिलनी चाहिए।
लेखक हिन्दी के व्याख्याता और राजस्थानी के साहित्यकार हैं।
email- aapnibhasha@gmail.com
Mobile- 96024-12124

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Khed Nahi Hai
खेद नहीं है
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ये सभी लेख पिछले कुछ वर्षों से ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका में ‘कटाक्ष’ स्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित हो रहे हैं... आगे...
Ek Myan Do Talwar
एक म्यान दो तलवार
कुलविंदर सिंह कंग, जसप्रीत कौर कंग पृष्ठ 99
‘हास्य-व्यंग्य’ जीवन का आधार होता है ! यह कमियों की ओर इंगित करता है और बैठकर विचार करने को विवश करता है !... आगे...
Chubhate Vichar
चुभते विचार
सूर्या सिंह पृष्ठ 145
कोई भी प्रेरक किसी को प्रेरित नहीं कर सकता, कोई भी इंसान किसी की जिंदगी नहीं बदल सकता... आगे...
Lalmaniyan
ललमनियाँ
मैत्रेयी पुष्पा पृष्ठ 150
रनवीर ने पहले ही कह दिया था कि गाँव की अन्य औरतों की तरह अब तुम सिर पर डलिया-तसला धरे नहीं सोहातीं। आखिर प्रधान की पत्नी हो... आगे...
Apsara Ka Shap
अप्सरा का शाप
यशपाल पृष्ठ 91
कुटिया से मेनका के लोप हो जाने पर जब तक शिशु कन्या महर्षि विश्वामित्र की गोद में किलकती-हुमकती रही, वे शिशु में मग्न रह कर सब कुछ भूले रहे... आगे...
एक ख़ास वेबसाईट जहां साहित्य जगत की बहुत काम की किताबें और उनकी जानकारी मिल जाती है. हम ब्लॉगर को पढ़ने की भी बहुत जरुरत रहती है. सायद ये लिंक आपके काम आयेगा .बहुत सारी शुभकामनाएं
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आपका माणिक

चित्तौडगढ के दो धुरंदर चिठ्ठाकारों से आपको मिलाते हैं


ब्लॉगर साथियों
नमस्कार
ब्लॉग्गिंग करते करते लगता है की बस सुबह उठो और ब्लॉग की पड़ताल करो की उसे रात भर में किस किस ने छेड़ा और क्या टिप्पणियाँ करी हैं . कई बार ऐसा भी होता है की हमें अचानक याद आता है की हमें भी उनका ब्लॉग देखना चाहिए जिन्होंने हमारे ब्लॉग पर टिप्पणी करी है.सार्थक ब्लॉग्गिंग के लिए रोजाना लिखने के बजाय थोड़ा बहुत पढ़ते भी रहना जरुरी लगने लगा है.केवल शुरू की चार लाइन पढ़कर टिप्पणी करने की औपचारिकता से बचना चाहिए.खैर भाषणबाज़ी बंद करता हूँ.बोर नहीं करते हुए मुद्दे पर आता हूँ.आज की इस पोस्ट में जो कहना चाहता था.वो ये क़ि यहाँ दो युवा साथियों की कहानी है.

आइये आज हम आप को मिलाते हैं चित्तौडगढ के दो धुरंदर चिठ्ठाकारों से जो अपनी पहचान की दुनिया में ओरे को कुछ अपनी गति से फैलाव दे रहें हैं.ब्लॉग्गिंग जहां कहीं बार अपने मन की संतुष्ठी के लिए की जाती हैं वहाँ ये साथी अपने इलाके की ज़मीं पर इस दुनिया के पुराने खिलाड़ी बनते जा रहे हैं.हालांकि ब्लॉग्गिंग में इनके हाथ लगभग साफ़ है.इनके ब्लोगों पर कई बार सार्थक लेखन की झलक देखी गयी है.खैर चलो

  • बसे पहले आप को मिलाते हैं हम लाल पतलून में बैठे शेखर जी से ये अपनी बी.कॉम की पढाई पूरी कर चुके अभी तक कुंवारे ब्लॉगर हैं.और आजकल बिल्कुल फ्री हैं | सारे दिन एक ही काम रहता है,वो है अपना ब्लॉग लिखना और लोगों के ब्लोग्स पर टिपण्णी करना | ख़ास तौर पर कहें तो आप काव्य 'वाणी' ब्लॉग और अमृत'वाणी'.कॉम के स्वामी हे |

  • और अब आप को मिलवाते हैं उस शक्स से जो नीली पतलून में बैठे हैं और वो एक बेटी के बाप हे , सरकारी नैकरी हैं , ज्यादातर कवितायेँ लिखते हैं ,और आकाशवाणी में बोलते हैं.. ब्लॉग्गिंग का अभी अभी भूत सवार हुवा है ये है माणिक जी हैं. , आप माणिकनामा ओर अपनी माटी ब्लॉग के ठेकेदार हैं.
आशा करते हे आप को ये जबरदस्ती दी गई सूचना पसंद आएगी |


सार्थक तरीके से ब्लॉग्गिंग

नमस्कार ब्लॉगर साथियों
हम  345 ब्लोगों के साथ अब कुछ ठीक ठाक सफ़र के साथ आगे बढ़ रहें हैं.ब्लॉग्गिंग की दुनिया में,वैसे तो सभी अपना अपना काम कर रहे हैं,मगर चिठ्ठाजगत और ब्लोगवाणी की सेवाएँ लाज़वाब है.हम तो  एक छोटे से सेतु मात्र हैं.आप लोगो के साथ ये यात्रा यूं ही चलाती रही ऐसी ही अपेक्षा है.

अपनी माटी ब्लॉग अग्रीगेटर पर आप सभी की पोस्ट को देखते हुए हमने इस सप्ताह के दो ख़ास ब्लॉग घोषित आज ही करा दिए हैं.हमारे दूसरे ब्लॉगर साथी इन ब्लोगों को देख  कर कुछ और सार्थक तरीके से ब्लॉग्गिंग कर पायेंगे. चयनित को बधाई.तो अब करते हैं आने वाले सन्डे का इन्तजार.अगले परिणाम तक शुभ जीवन


 इस सन्डे-
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भड़ास

http://bhadas.blogspot.com/

शब्दों का सफर  

http://shabdavali.blogspot.com/

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तीन   सप्ताह पहले तक   -
http://neelima-apple.blogspot.com/
http://swapnamanjusha.blogspot.com/

माणिक