पोरबंदर यात्रा: समुद्र, इतिहास और संस्कृति की एक यादगार कहानी

1 अगस्त 2025: सफर की शुरुआत

सुबह सोमनाथ के सर्षण करने के बाद मे मैं पोरबंदर के लिए निकल पड़ा। रास्ते में गुजरात की मिट्टी की खुशबू अरब सागर से आती लहरों और खेतों की हरियाली ने मन को ताज़गी दी। छोटे-छोटे गाँव और ताज़ी हवा ने सफर को और खूबसूरत बना दिया। जैसे-जैसे दूरी घटती गई, समुंदर की नमीयुक्त हवा आने लगी और नमक की हल्की-सी खुशबू भी महसूस हुई।  

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समुद्र के किनारे – लहरों से बातें

पोरबंदर पहुंचकर सबसे पहले मैं समुद्र तट पर गया। वहाँ की अरब सागर की लहरें दूर से आतीं, किनारे से टकराकर वापस लौट जातीं। उनकी आवाज़ सुनकर मन को शांति मिली। मैंने सोचा कि ये लहरें कितनी पुरानी कहानियाँ समेटे चल रही होंगी। कुछ देर तट पर खड़े होकर मैं ठंडी हवा और लहरों की गूँज का आनंद लेता रहा।  

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शेरों का शहर – पोरबंदर की गलियाँ

समुद्र के बाद मैं शहर की ओर बढ़ा जिसे लोग “शेरों का शहर” कहते हैं। यहाँ की गलियाँ संकरी हैं, लेकिन हर मोड़ पर इतिहास दिखता है। मैंने पुरानी हवेलियाँ देखीं जिनमें खूबसूरत नक्काशी और मजबूत पत्थर के दरवाजे थे। सौ साल से भी पुरानी यह इमारतें आज भी मजबूती से खड़ी हैं। इन्हें देख कर गुजराती शिल्पकला की प्रशंसा हुई।  

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गांधी चौक – इतिहास के बीच खड़ा प्रतीक

इसके बाद मैं गांधी चौक गया जहाँ महात्मा गांधी की मूर्ति लगी है। चौक के चारों ओर पुरानी इमारतें और लोग घूमते दिखे। मैंने पास के छोटे से पार्क में कुछ समय बैठकर वातावरण का आनंद लिया। बच्चे, बूढ़े और पर्यटक सभी आदर से इस जगह को देखते हैं। यहाँ खड़े होकर मुझे महसूस हुआ कि अतीत और वर्तमान दोनों साथ-साथ मौजूद हैं।  

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सुदामा जी का मंदिर – सुदामापुरी की पहचान

गांधी चौक से थोड़ी दूर चलकर मैं सुदामा जी के मंदिर पहुँचा। मान्यता है कि पोरबंदर को पहले सुदामापुरी कहते थे। मंदिर का मुख्य द्वार भव्य है और अंदर गए ही मन को शांति मिलती है। संगमरमर के स्तंभों पर बनी नक्काशी और मंदिर में बजते भजन आत्मा को छू लेते हैं। मैंने कुछ देर मंदिर प्रांगण में बैठकर सुदामा और कृष्ण की मित्रता की कहानियाँ याद कीं।  

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ऐतिहासिक रेस्टोरेंट में गुजराती स्वाद

मंदिर दर्शन के बाद भूख लगी तो पास के एक पुराने रेस्टोरेंट में गया। वहाँ का माहौल पुराने जमाने जैसा था, लकड़ी की मेज़-कुर्सियाँ और दीवारों पर लगे पुराने फोटो। मैंने गुजराती थाली मंगाई जिसमें ढोकला, फाफड़ा, कढ़ी, उंधियु, भाखरी, खमन, दाल, अचार, चटनी और श्रीखंड था। हर व्यंजन में मसालों की संतुलन और मिठास का अच्छा मेल था। रसोइये ने बताया कि उनका परिवार तीन पीढ़ियों से यह रेस्टोरेंट चला रहा है।  

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यात्रा का सार

पोरबंदर की यह एक दिन की यात्रा मेरे लिए खास रही। समुद्र की लहरें, पुरानी हवेलियाँ, गांधी चौक, सुदामा जी का मंदिर और गुजराती थाली—हर अनुभव अनोखा था। यहाँ की मिट्टी में इतिहास बसा है और लोग भी मिलनसार हैं। पोरबंदर सिर्फ एक शहर नहीं, एक यादगार अनुभव है। जब भी समुंदर की हवाएँ या गुजराती स्वाद याद आएगा, यह दिन फिर से ताज़ा हो उठेगा।





































































 

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