राजस्थांन दिवस

राजस्थांन दिवस मनावण री मन मांय उमक जागी, अेक’र पाछौ टटोळ्यौ जकौ पोसाळां मांय बांच्यौ हौ. राजस्थांन कंया बण्यौ अर इणरौ इतिहास कांई हौ.


सब देख’र लागौ कै फक्त इणरौ नांव इज राजस्थान पड़‌यौ छै, राजस्थान मांय रेवणीयौ राजस्थानी कुहावै पण वौ ई फक्त नांव रौ राजस्थांनी, उणनै उणरी भासा अर संस्क्रती सूं हेत राखण रौ हक ईं नीं दियौ भारत सरकार.

सरदार पटेल राजपुतानै रै सगळा राजावां नै लाळा-लुंभा करनै अर वांनै वांरी अर वांरै रईयत (प्रजा) री भलाई बताय’र भारत मांय विलय वास्तै राजी कर दिया. इणरै साथै ईं अठा री संस्क्रती, अठा री सभ्यता, रीति रिवाज सैं कीं खतम कर दियौ. भारत मांय विलय रै साथै ईं आपां आपणी हजारूं बरसां री परंपरा, भासा अर संस्क्रती रौ राष्ट्रीय अेकता अर अखंडता रै नांव पर आपां समर्पण कर दियौ.

राजस्थांनी भारत मांय सबसूं विशाळ भाग मांय बोली जावण वाळी भासा छै. आ भासा आखै राजस्थांन, मध्य प्रदेश रै माळवै, उत्तर गुजरात, पाकिस्तान रै सिंध, थारपारकर अर पंजाब रा घणकरा इलाकां, हरियाणा अर इणरी अेक बोली गुजरी तौ कश्मिर, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चेकोस्लाविया अर सोवियत रुस रा घणकरा देसां मांय बोलीजे.

भारत सरकार राजपुतानै नै राजस्थांन नांव तौ दे दियौ, पण राजस्थांन रा प्राण अठा री भासा नै मानता नीं दी. राजस्थांन री सगळी बोलियां सूं मिळ’र जै भासा बणै वा अेक राजस्थांनी नै इण री बोलीयां रै हिसाब सूं तोड दी अर इणनै हिंदी भासा री अेक बोली बताय दि.

भारत सरकार नै औ डर ई सतावै कै जिण हिंदी भासा नै राष्ट्रभासा बणावण रौ वा सुपणां देखै छै, अर बोलै छै कै आ भासा दुनीया री तीजी सबसूं ज्यादा बोली जावण वाळी भासा छै. राजस्थानी भासा नै मान्यता मिळ जावै तौ इण भारत सरकार री आ बात झुठी हु जावै, क्युं कै राजस्थांनी अेक स्वतंत्र भासा रै रुप मांय भारत री सबसूं ज्यादा बोली जावण वाळी भासा छै.

राजस्थान रै भारत मांय विलय सूं राजस्थांन नै अेक हिसाब सूं गुलामी इज हाथ लागी है. भारत मांय रेवता राजस्थांनीयां नै आपरी भासा वापरवा रौ इधकार कोनीं, जिणसूं वांनै वांरै राज्य मांय भासा रै आधार पर मिलण वाळा सगळा हकां सूं हाथ धोवणा पडे छै. राजथांनीयां नै वांरै खुद रै राज्य मांय नौकरी नीं मिळै. दूजा राज्यां रा हिंदी भासी आय’र अठै नौकरी करै अर आपणा राजस्थांनी भाई प्रदेसा कांनी न्हावै.

दूजी कांनी पोसाळां मांय शिक्षा हिंदी भासा मांय हुवण सूं टाबरां नै भणाई मांय तकलिफ आवै. टाबर डाफाचुक व्है जावै कै, घरै तौ वौ दूजी भासा बोलै अर पोसाळां मांय दूजी भासा छै. वौ खुद री भासा नै हिनता री निजर सूं देखण लागै. अेड़ौ टाबर ना तौ हिंदी बराबर सिखै ना ई राजस्थांनी रौ ग्यान हुवै. सेवट ૪-૫ पास करनै वौ पोसाळां (स्कुलां) छोड’र प्रदेशां कांनी मुंडो करै.

राजस्थांन रै भारत मांय विलय सूं अठा रै मानखां नै बेरोजगारी मिळी, लोगां नै आपणी भासा-संस्क्रती रै प्रती हिन भावना मिळी. पछै बतावौ कैड़ौ राजस्थांन दिवस. हकिकत मांय तौ ૩૦ मार्च नै राजस्थांन वासियां नै काळा दिन रै रुप मांय मनावणौ चाईजै. लोग केह्‌वै इण दिन राजपुतानै री सगळी रियासतां आपस रौ बैर भुलाय’र अेक हूगी, ना आ बात नीं है, राजस्थान सूं पैली जद राजपुतानौ हौ उण समै अेकता अबार रै राजस्थान करता वधारै ही, हर रियासत री राजभासा राजस्थानी ही. लोगां रै कन्नै रुजगार हौ अर आपसरी मांय घणौ भाईपौ हौ.

रहसी राजस्थान, राजस्थानी राखिया ।
हनवंतसिंघ

किसका राजस्थान

30 मार्च 2010, 12:43 hrs IST
 राजस्थान पत्रिका
सुना आपने! आज राजस्थान दिवस है। राज्य के सभी सरकारी कार्यालय, अफसर एक उत्सव के मूड में होंगे। समारोह उन सभी शहरों में भी आयोजित होंगे, जहां राजस्थानियों की बहुलता है। रणबांकुरों का प्रदेश जो ठहरा। कोई एक बच्चा भी यह पूछ ले कि कौन-सा राजस्थान और किसका राजस्थान तो मेरी शर्त है कि आप में से अधिकांश इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाएंगे। क्योंकि राजस्थान आज किसी के जहन में है ही नहीं। जिन नेताओं को जनप्रतिनिधि के रू प में चुनकर जनता कानून बनाने को भेजती है, कानूनों को लागू करने को भेजती है, वे तो पूर्ण निष्ठा और बेशर्मी से तबादला कराने में व्यस्त हो जाते हैं। जिस रेगिस्तान को हम वरदान बना सकते थे, साठ साल से उसे अभिशाप की तरह ढो रहे हैं। कुदरत ने हमें जो दिया है उसका लाभ भी जनता तक नहीं पहुंचा पा रहे। सौर ऊर्जा इसका उदाहरण है। साठ साल में दोहन किया होता तो आज दूसरे राज्यों को भी देने की स्थिति में होते। दृष्टि और अपनेपन का अभाव निरंतर बढता ही जा रहा है। कोई भी सरकार और कोई भी राजनेता हो, वह कभी यह बताने की स्थिति में ही नहीं होता कि इस साल क्या किया और अगले साल क्या करेगाक् पिछले साठ साल का इतिहास इस बात की साक्षी दे रहा है कि हमने अपने नारों के सहारे वोट की राजनीति तो चलाई है, किन्तु राजस्थान को किसी भी पार्टी ने याद नहीं रखा। सत्ता में आते ही राजस्थान सिकुडकर मेरे परिवार तक रह जाता है। भ्रष्टाचार, अपराध, मादक द्रव्यों की तस्करी, भू-माफिया जैसे मामलों में तो जरू र हमने महारथ हासिल की है, किन्तु जनता के हितों से जुडे किसी एक भी विभाग में कोई कीर्तिमान नहीं बनाया। बल्कि पिछडते ही जा रहे हैं। पूरा का पूरा बजट ऊपरवाले खा रहे हैं। उनको कहां याद है कि उनका कोई दायित्व इस माटी के लिए भी है। किसी को भी याद नहीं आता। अफसर तो वैसे भी लोगों से जुडे नहीं रहते। शिक्षा में देश भक्ति, इतिहास, भूगोल आदि सब कुछ बाहर कर दिया। आदमी को भी बाहर कर दिया। मंत्रियों को राज्य की सम्पूर्ण तस्वीर पता नहीं। अफसरों के भरोसे पांच साल काट लेते हैं। साठ साल की उपलब्धि यह है कि हमने जाति और सम्प्रदाय के नाम पर राजस्थान के टुकडे-टुकडे कर दिए ताकि कभी कोई एक होकर राजस्थान की बात ही नहीं कर सके। हर समूह को लगता है कि वही सबसे ज्यादा दबा है। जबकि दो समूहों में जब भी टकराव होता है तो लगता है कि कोई तीसरा समूह राज्य में है ही नहीं।
अन्य प्रदेशों को भी देखें। कैसे केरल शिक्षा में अपना सर्वोच्च स्थान बना सका, गुजरात और कर्नाटक की प्रगति पर कोई दृष्टि डाले। भ्रष्टाचार वहां भी होगा, किन्तु कुछ प्रशंसा करने लायक काम भी हुआ है। हम यह तो नहीं कहते कि बाल ठाकरे की तरह 'मराठी' राग चलाओ, किन्तु यह तो उम्मीद करते हैं कि रणबांकुरों की धरती पर महिलाएं सुरक्षित घूम सकें। शिक्षा, चिकित्सा, जल, सडक, बिजली जैसी साधारण सुविधाएं बिना किसी बहानेबाजी के हर व्यक्ति को उपलब्ध हो सके। महाराणा प्रताप और मीरा बाई के नाम को लजाने के कार्य तो सरकार न करे।
आज हर बच्चा अपने कॅरियर की चिन्ता में व्यस्त है। इसके आगे उसे कुछ नजर नहीं आता। उसे रिश्तेदारों से मिलने का समय नहीं है। कुछ समय मिलता भी है तो इंटरनेट पर अपना भविष्य ढूंढता है (राजस्थान में नहीं)। उसके पास समाज/प्रदेश की चिंता करने का समय भी नहीं है। नेता के पास भी नहीं, अफसर के पास भी नहीं। जनता तो सरकार को चुनकर मुक्त हो जाती है। इसी विश्वास के साथ कि वह पांच साल में कुछ करेगी जरू र। इसी आस में साठ साल निकल गए। राजस्थान की ओर कोई नहीं देख रहाक् फिर राजस्थान दिवस समारोह किधर ले जाएंगे। आने वाला कल, उन्हीं लोगों के हाथ में होगा जो स्वयं को राजस्थान का मानकर इसके विकास के लिए संकल्पित होंगे। बाकी सब अपना-अपना पेट भर-भरकर चले जाएंगे। नई पीढी को, अपने को राजस्थान का प्रतिनिधि मानकर यह संकल्प लेना चाहिए कि जो राजस्थान के हितों के खिलाफ काम करे, उसे अपराधी मानकर उसके साथ वैसा ही व्यवहार करे। राजस्थान एक संकल्प है। वही हम सबका संकल्प होना चाहिए।

गुलाब कोठारी

सवाल भाषा का नहीं वजूद का है

सवाल भाषा का नहीं वजूद का है



            मायड़ भाषा राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता का मुद्दा राजनीति के गलियारों में उलझ कर रह गया है। गत साठ वर्षों से गांधीवादी तरीके से चल रहे शांतिपूर्ण जन आंदोलन के प्रतिफल के रुप में थोथे आश्वासनों के अलावा कुछ भी नहीं मिला है जिससे अब राजस्थानी मोट्यारों का धैर्य जबाब देने लगा है। गौरतलब है कि अषोक गहलोत के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने ही 25 अगस्त 2003 को प्रदेश की विधानसभा से राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का संकल्प पारित कर केन्द्र को भिजवाया था। अब केन्द्र व राज्य दोनों में कांग्रेस सत्तारूढ है। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री संसद के अन्दर व बाहर कई मर्तबा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता का प्रस्ताव रखने का भरोसा दिला चुके है। प्रदेष की जनता उस दिन का बेसब्री से इन्तजार कर जब उनकी जबान पर लगा ताला खुल जाएगा व राजस्थान की मायड़ भाषा को देष की 22 अन्य भाषाओं की तरह भारतीय संविधान में बराबरी का दर्जा हासिल होगा।


गत विधानसभा व लोकसभा चुनावों में राजस्थानी का मुद्दा केन्द्र में रहा है। अखिल भारतीय राजस्थानी मान्यता संघर्ष समिति के बेनर तले चल रहे आन्दोलन को व्यापक जन समर्थन मिला है। रचनाधर्मियों के अलावा बड़ी संख्या में विद्यार्थी-युवा वर्ग इस संधर्ष में भागीदार बना है। प्रदेष के कई स्थानों पर "भासा नीं तो वोट नीं" के नारे के साथ प्रदर्शन हुए। बीकानेर में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की सभा में मुंह पर सफेद पट्टी बांध कर मान्यता नहीं मिलने की पीड़ा का इजहार किया गया। चुनावी समर में उतरे प्रत्याशियों से भाषाई मान्यता के मुद्दे पर जवाब तलब किया गया। उम्मीदवारों ने भी राजस्थानी के मान्यता के प्रति अपनी निष्ठा जताई तथा मायड़ भाषा में प्रचार कर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया। मतदान पूर्व जनमत संबंधी चर्चाओं में राजस्थानी की मान्यता का मुद्दा शीर्ष वरीयता में उभर कर सामने आया। कांग्रेस व भाजपा के अलावा बसपा, इनेलो, जद आदि दलों के नेताओं ने प्रत्येक राजस्थानी के आत्मसम्मान हेतु मायड़ भाषा की मान्यता का पुरजोर समर्थन किया।
अपने पुरातन साहित्य, समृद्ध व्याकरण, वृहत शब्दकोश एवं राजस्थानी भाषी विशाल जनसमुदाय के कारण राजस्थानी पूर्ण रूप से एक वैज्ञानिक भाषा है। भाषा-भाषियों की दृष्टि से राजस्थानी का भारतीय भाषाओं में सातवाँ तथा विश्व भाषाओं में सोलहवाँ स्थान है। राजस्थान के अलावा गुजरात, पंजाब, हरियाणा व मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र के लोग रोजमर्रा की जिन्दगी में राजस्थानी भाषा का प्रयोग करते है। पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में राजस्थानी सहजता से बोली-समझी जाती है। वहाँ राजस्थानी भाषा से नाता रखने वाली कई संस्थाएँ भी सक्रिय है। वर्ष 1994 में पाकिस्तान के राजस्थानी लेखकों एक दल जोधपुर से प्रकाषित ’माणक‘ पत्रिका के कार्यालय आया। राजस्थानी लोक साहित्य की विषाल सम्पदा है जिसमें यहाँ के लोकाचार, इतिहास, संस्कार व राग-रंग की थाती सुरक्षित है। ’ढोला मारू रा दूहा‘ तथा ’वेली क्रिसण रूकमणी री‘ जैसी उत्कृष्ट कृतियों की रचना राजस्थानी में हुई है। जिस भाषा में 20 हजार प्रकाषित ग्रंथ तथा तीन लाख से अधिक हस्तलिखित पांडुलिपियां मौजूद है। आठवीं सदी के ऐतिहासिक साक्ष्यों में जिसकी चर्चा मिलती है। जार्ज ग्रियर्सन, डा. एल. पी. टेस्सीटोरी, रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे विद्वानों ने बगैर किसी विवाद के जिसे समर्थ भाषा स्वीकार किया है, उस भाषा को मान्यता के लिए 63 वर्षों का इन्तजार हमारे समय की एक विडम्बना नहीं तो भला क्या है?
राजस्थानी के स्वतंत्र व समर्थ भाषा है। जब यहां के लोग हिन्दी को प्रथम राजभाषा स्वीकार करते हुए द्वितीय राजभाषा के रूप मंेे अपनी मायड़ भाषा की मांग करते है तो भला ऐतराज क्यों ? जबकि हिन्दी भाषी हरियाणा में पंजाबी व दिल्ली में पंजाबी व उर्दू को संयुक्त रूप से द्वितीय भाषा का दर्जा दिया गया है।
संसार की समस्त भाषाओं की अपनी बोलियां है, जो उसकी समृद्धि की सूचक मानी जाती है। जिस तरह अवधी, बघेली, छत्तीसगढी, ब्रज, बांगरू, कन्नोजी, बुंदेली व खड़ी बोली का समूह हिन्दी की धरोहर है वैसे ही वागडी, ढूंढाणी, हाड़ौती, मेवाड़ी, मेवाती, मारवाड़ी, मालवी आदि बोलियां राजस्थानी की का गौरव बढ़ाती है। बोलियों की विविधता के बावजूद राजस्थानी का एक मानक स्वरूप तय है जो पूरे प्रदेश में सहज स्वीकृत है।
राजस्थानी जीवंत भाषा है। भक्ति, ज्ञान, श्रृंगार व वीरता से परिपूर्ण राजस्थानी साहित्य में हमारे देष के एक हजार वर्षो के राजनैतिक-सांस्कश्तिक-धार्मिक अतीत के साक्ष्य सुरक्षित है। जैन धर्म के मनीषी साधुओं ने अपनी ज्ञान रा्शि को राजस्थानी भाषा में रचित ग्रन्थों में संजोया है। महाराणा प्रताप, रामदेवजी, तेजाजी, करणी माता, गोगाजी, जाम्भोजी, जसनाथ जी, मीराबाई, आचार्य तुलसी, जैसे भक्तों- शूरों की मातृभाषा राजस्थानी ही है। केन्द्रीय साहित्य अकादमी राजस्थानी को स्वतंत्र भाषा मानते हुए प्रतिवर्ष श्रेष्ठ पुस्तकों पर पुरस्कार देती है। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी राजस्थान सरकार द्वारा स्थापित स्वायत्त संस्था है। राजस्थानी में दर्जनों पत्रिकाएँ नियमित प्रकाशित होती है। राजस्थानी संगीत की कर्णप्रिय धुनें सात समन्दर पार भी सुनी जाती है। राजस्थानी सिनेमा भी धीरे-धीरे अपना प्रभाव जमा रहा है। राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश के दर्जनों विश्वविद्यालयों में राजस्थानी साहित्य पर शोध कार्य हुए है तथा आज भी शोधार्थी राजस्थानी साहित्य सम्पदा से हरदम कुछ नया प्राप्त करते है।
इन्टरनेट पर भी इन दिनों राजस्थानी भाषा व साहित्य छा रहा है। नेट के माध्यम से दुनियां भर का राजस्थानी समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत से नाता जोड़ रहा है। वेबपत्रिका नेगचार, जनवाणी परलीका, ओळखांण, आपणो राजस्थान, मनवार आदि दर्जनों राजस्थानी वेब पत्रिकाएं हैं जो राजस्थानी को विश्व व्यापक पहचान दिला रही है।
अब यह स्पष्ट हो चुका है कि राजस्थानी को मान्यता नहीं मिलने की मूल वजह राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव है। प्रदेश के सांसद इस गंभीर मुद्दे का मुखर ढंग से उठाने में नाकाम रहे हैं। सवाल केवल भाषा का नहीं है बल्कि हमारे वजूद का है। इस तरह एक ओर यह प्रदेश की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रश्न है वहीं युवा वर्ग राजस्थानी को मान्यता नहीं होने को अपनी बेरोजगारी का प्रमुख कारण मान रहा है। अब समय आ गया है कि राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता देकर 8 करोड़ लोगों की भावनाओं का सम्मान किया जाए। राजस्थानी राजस्थान की तो अस्मिता है ही, देश का भी गौरव है। महाकवि कन्हैयालाल सेठिया के शब्दों में कहें तो "राजस्थानी रै बिना क्यारों राजस्थान।"
लेखक राजस्थानी की मान्यता के आन्दोलन से जुड़े हुए हैं

राजस्थानी राखियां,रहसी राजस्थान

राजस्थानी राखियां,

रहसी राजस्थान


-मनोज कुमार स्वामी, सूरतगढ़
भेदभाव तो सदियां सूं चालतो आयो। पण राजस्थानी भाषा साथै कीं बेसी। राजस्थान रा रैवासी आपरी भाषा री मानता री लड़ाई लड़ै, पण गांधीवादी ढंग सूं। कुरसी बिराज्या नेता बां री अरज सुणै कोनी। वोटां वगत तो लुळ-लुळ हाथ जोड़ै। पगां पड़ै। इलाकै रै विकास री बातां करै। पण चुणाव जीततां पाण गधै रै सींगां ज्यूं अदीठ व्है जावै। चुणाव री वगत मीठी गोळी देवै। पण पछै भाषा अर भाषा रा हेताळुवां नै भूल जावै। दीनाजपुर (बंगाल) मांय सन् 1944 मांय अखिल भारतीय राजस्थानी सम्मेलन नांव सूं बडो जलसो हुयो। तद सूं लेय' अजे तक आंदोलन लगोलग चाल रैयो है। पण अजे पार कोनी पड़ी। दुनिया रो कोई इस्यो देस कोनी जठै रै लोगां नै आपरी भाषा सारू इत्तो लाम्बो आंदोलन चलावणो पड़्यो हुवै। कोई इसी भाषा कोनी दुनिया में जिकी री इत्ती बेकदरी होयी हुवै। मां सूं आछो कीं नीं हुवै जगत में। भाषा तो आपणी मां है। मायड़भाषा रो मान करणो भूल बैठ्या अठै रा वासी। पण फेर लखदाद है बां हेताळुवां नै जका लगोलग मायड़भाषा नै मान दिरावण री लड़ाई लड़ै। लड़ता थकै कोनी। मायड़भाषा सनमान जातरा जकी श्रीगंगानगर सूं 21 फरवरी, 2003 नै सरू हुय' राजस्थान रा उगणीस जिलां नै पार करती 4 मार्च, 2003 नै दिल्ली पूगी। भाषा नै लेय' एक अनूठी जातरा ही। इसी मिसाल और कठै नीं मिलै।
संविधान री आठवीं अनुसूची में सामल होवण रा सगळा मापदण्ड राजस्थानी भाषा पूरा करै। पण नेतावां नै दीसै कोनी। लाखूं ग्रंथ ग्रंथागारां में हाथां लिख्योडा पड़्या है। जे ना जचै तो जाय' आपरी आंख्यां सूं पड़तख देखल्यो। पण देखल्यै कुण? तो जाण-बूझ' कानां में कोइया लेवै। जींवतां नै तळै नाखै। दिल्ली जाय' ओळमो देवो तो खाणै ऊंठ ज्यूं सीधा आवै। धिरकार है मायड़ रै इस्यै कपूतां नै, जका आपरी मां-भाषा रो मान नीं करै। नेतावां री अणदेखी रै बावजूद राजस्थानी आपरो रुतबो कायम राख्यो है। आठवीं अनुसूची मांय भेळी हुयां बिना केन्द्रीय साहित्य अकादेमी सूं मान्यता है। बोर्ड, विश्वविद्यालयां अर यू.जी.सी. रै पाठ्यक्रमां मांय सामिल है। मतलब 11 वीं सूं लेय' एम.. तांईं री पढ़ाई राजस्थानी विषय लेय' करी जा सकै। यू.जी.सी. रै नेट में राजस्थानी है। टी.वी. अर रेडियो पर राजस्थानी समाचारां रा बुलेटिन आवै। राजस्थानी कलाकारां री दुनियां में न्यारी पिछाण है। सैकड़ूं पत्र-पत्रिकावां छपै। राज्य री राजस्थानी भाषा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी है। भाषा जण-जण रै काळजै रची-बसी है। तो पछै कांईं कमी है? कमी है तो बस आठवीं अनुसूची में सामल होवणै री। म्हारो नेतावां सूं सवाल है कै जे आप राजस्थानी री मानता री बात नीं करो अर राजस्थानी नै भाषा नीं मानो तो पछै राजस्थानी रै नांव पर ऊपर लिखी बातां क्यूं? सवाल भी काळजै में बार-बार हूक-सी उठावै कै जद 22 भाषावां नै राज मानता तो पछै राजस्थानी साथै दुभांत क्यूं? अमरीका सरकार जिकी भाषा नै सनमान बगसै बीं नै भारत सरकार क्यूं कोनी मानै? जालोर रा लालदासजी राकेश लिखै-

ओ जीवण तो जावसी, दे माथो रख मान।
राजस्थानी राखियां, रहसी राजस्थान।।
आजादी आई अठै, ताळा जड़्या जुबान।
राजस्थानी राखियां, रहसी राजस्थान।।

राजस्थानी के बिना कैसा राजस्थान दिवस?


    हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी राजस्थान दिवस की धूम है। प्रदेश में ही नहीं, विदेशों में भी प्रवासी राजस्थानी इस दिन को हर्षोल्लास से मनाते हैं। गत कई वर्षों से देखने में आया है कि राजस्थान में ही राजस्थानी भाषा और संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों को बहुत कम स्थान दिया जाता है। सच तो यह है कि भाषा संस्कृति की संवाहक होती है और उसी से किसी भू-भाग की पहचान सुरक्षित रहती है। राजस्थानी भाषा की उपेक्षा कर हम अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। ऐसे में हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जिस भाषा के नाम पर इस प्रांत का नाम पड़ा, उसकी कितनी कद्र हम और हमारी सरकार कर रही है। 
    1828 ई. में प्रकाशित अपने इतिहास ग्रंथ 'एनाल्स एण्ड एंटीक्वीटीज ऑफ राजस्थान' में कर्नल जेम्स टॉड ने सबसे पहले 'राजस्थान' शब्द का प्रयोग किया। जॉर्ज ग्रियर्सन ने 1907-08 ई. में अपनी 'लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' पुस्तक में राजस्थान में बोली जाने वाली समस्त बोलियों को एक कुटुम्ब माना और राजस्थान प्रदेश की भाषा को 'राजस्थानी'नाम दिया। भाषा के आधार पर ही राजस्थान प्रांत का गठन और नामकरण हुआ, मगर कालांतर में यहां की महान संस्कृति और समृद्ध भाषायी परम्परा हाशिए पर रख दी गई।
     राजस्थान दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में हमें अपनी महान भाषा और महान संस्कृति के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए राजस्थानी कार्यक्रम आयोजित करने चाहिएं। सुनीति कुमार चाटुज्र्या, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, मदनमोहन मालवीय, राहुल सांकृत्यायन, काका कालेलकर और डॉ. एलपी टैस्सीटोरी तथा ग्रियर्सन जैसे देशी-विदेशी विद्वानों ने जिस भाषा के महत्त्व का बखान किया, वह भाषा संविधान की आठवी अनुसूची में स्थान पाने को तरस रही है, तो हमारा चिन्तन-मनन इस दिशा में भी होना चाहिए। 
    25 अगस्त 2003 को राजस्थान विधानसभा में एक सर्वसम्मत संकल्प प्रस्ताव पारित किया गया कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए, मगर सात वर्ष से यह मामला केन्द्र सरकार के पास लम्बित है। 17 दिसम्बर 2006 को केन्द्रीय गृह-राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने राज्य सरकार के संकल्प का हवाला देते हुए लोकसभा में बताया था कि केन्द्रीय गृह-मंत्रालय ने राजस्थानी एवं भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता का विधेयक बजट सत्र 2007 में लाने पर सैद्धांतिक मान्यता प्रकट कर दी है। सदन के पटल पर मंत्री द्वारा सरकार के संकल्प को प्रकट किए हुए चार वर्ष हो चुके हैं और चौथा बजट सत्र आ रहा है तथा प्रदेश वासियों को अपनी मायड़भाषा की मान्यता के विधेयक का बेसब्री से इंतजार है। वहीं राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की सारी व्यवस्थाएं गत तीन वर्षों से ठप है।
    प्रदेश के माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा का स्तर सुधारने के उद्देश्य से राजस्थान शिक्षा विभाग ने हाल ही में 'माध्यमिक शिक्षा अभियान' चलाया है। इस हेतु अन्य सामग्री के साथ-साथ विद्यालय पुस्तकालयों में पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों की खरीद हेतु विशेष बजट आवंटित किया गया है। जिला शिक्षा अधिकारियों ने बाकायदा पत्र-पत्रिकाओं और किताबों की एक सूची जारी की है और संस्था प्रधानों को उस सूची में से ही किताबों की खरीद करने को पाबंद किया है। ताज्जुब की बात तो यह है कि किसी भी जिले की सूची में राजस्थानी की पत्र-पत्रिकाओं और किताबों का नाम शामिल नहीं है। क्या राजस्थान के विद्यार्थियों को राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति का ज्ञान नहीं करवाया जाना चाहिए? राजस्थान में नहीं तो क्या पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र आदि प्रांतों के स्कूली पुस्तकालयों में राजस्थानी की पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं को स्थान मिलेगा? तो फिर सवाल यह भी उठता है कि सरकार ने राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की स्थापना क्योंकर की और क्यों राजस्थानी लेखकों को प्रोत्साहन की डींगें हांकी जाती हैं।
    गौरतलब है कि देश के लगभग हर प्रांत में वहां की प्रमुख भाषा को प्रथम भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है और सारा राजकाज उसी भाषा में चलता है। वही भाषा शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रचलित है। मसलन पंजाब में पंजाबी, गुजरात में गुजराती, महाराष्ट्र में मराठी, आंध्र प्रदेश में तेलुगु, अरुणाचल प्रदेश में असमिया, बिहार में मैथिली और हिन्दी, गोआ में कोंकणी, जम्मू-कश्मीर में उर्दू, झारखंड में संथाली, कर्नाटका में कन्नड़, केरला में मलयालम, मणिपुर में मणिपुरी, उड़ीसा में उडिय़ा, सिक्किम में नेपाली, तमिलनाडु में तमिल, प. बंगाल में बंगाली आदि। इन प्रांतों में हिन्दी, अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा को प्रांत की द्वितीय राजभाषा के रूप में अंगीकार किया गया है। यहां तक कि दिल्ली और हरियाणा राज्यों में तो पंजाबी को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया है। दूसरी और राजस्थान राज्य का हाल यह है कि यहां की प्रमुख भाषा राजस्थानी राज्य की प्रथम राजभाषा बनने की अधिकारिणी है, मगर उसे द्वितीय तो दूर तृतीय भाषा के रूप में भी स्वीकार नहीं किया जाता। राजस्थान के स्कूलों में संस्कृत, उर्दू, गुजराती, सिंधी, पंजाबी, मलयालम, तमिल आदि भाषाएं तो तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाई जाती हैं, मगर अपने ही प्रांत की राजस्थानी नहीं। राजस्थान की विधानसभा में राजस्थानी भाषा के संस्कारों से ही पला-बढ़ा और राजस्थानी में ही वोट मांग-मांग कर विधानसभा तक पहुंचा एक विधायक 22 भारतीय भाषाओं में भाषण देने का अधिकार तो रखता है, मगर अपनी मातृभाषा राजस्थानी में शपथ तक नहीं ले सकता।




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राजस्थान दिवस विशेष

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एक बार फिर से आभार. वैसे आपको बता दे की हमने अभी तक केवल सक्रिय ३३३ ब्लोगों को ही anumati   दी है. अगर आप भी अपने आपको सक्रिय ब्लॉगर मानते है तो कृपया अपने ब्लॉग का पंजीकरण करवाएं.

अपनी माटी ब्लॉग अग्रीगेटर सम्पादक मंडल सदस्य
शेखर


http://kavyawani.blogspot.com/

दो ख़ास ब्लॉग घोषित

नमस्कार ब्लॉगर साथियों
अपनी माटी ब्लॉग अग्रीगेटर पर आप सभी की पोस्ट को देखते हुए हमने इस सप्ताह के दो ख़ास ब्लॉग घोषित किये हैं.हमारे दूसरे ब्लॉगर साथी इन ब्लोगों को देख  कर कुछ और सार्थक तरीके से ब्लॉग्गिंग कर पायेंगे. चयनित को बधाई.तो अब करते हैं आने वाले सन्डे का इन्तजार.अगले परिणाम तक शुभ जीवन


 इस सन्डे-

रश्मि प्रभा... 

 http://lifeteacheseverything.blogspot.com/
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  अमृत'वाणी'


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एक  सप्ताह पहले तक   -

http://teesarakhamba.blogspot.com/ 
http://lalitdotcom.blogspot.com/  

पहली बार लिखी हें मेने कविता " shekhr kumawat "

जी हा साथियों मेने पहली बार  लिखी हें कविता



कई बार पापा के कहने पर और समझाने  पर मेने लिखाने की कोशिश की और देखते हें अपने जीवन की पहली कविता "हैं माँ " से शुरुवात  की हें हलाकि मेरे पिताजी हिंदी और राजस्थानी के बहुत बड़े कवि हें उन्होंने २५ से ज्यादा किताबे लिखी हें ! 


कई बार उन्होंने मुझे कहा की "बेटा जो काबिलियत मुझ में हें वो मेरा पुत्र होने के वास्ते कुछ कुछ तुम में भी हें " और इसी बात को ध्यान  में रख मेने पहली बार अपनी कविता लिख कर पापा को दिखाई  और सच में पापा ने उस में थोडा सा सुधार  कर उसे और भी अच्छा  बना दिया अब सोच रहा हुआ की और नई नई अछी कविताये लिखू !


हलाकि में अपने काम में ज्यादा व्यस्त रहता हु मगर अब पिताजी के रास्ते कदम पर चलने का मन बना लिया  हें !
आशा हें आप मेरे  ब्लॉग काव्य 'वाणी' पर समय समय पर आकर मुझ बाल मन को अपनी रह दिखाते रहेंगे 


http://kavyawani.blogspot.com/


शेखर कुमावत 

300 ख़ास ब्लोगों की जानकारी ab ek hi jagaha paye


नमस्कार
साथियों
हम आज आपको एक ऐसा विडगेट भेज रहे हैं.जो हिन्दी के 300 ख़ास ब्लोगों की पोस्ट का नवीनतम  जानकारी आपको आपके ब्लॉग पर ही बताताराहेगा. आपको कही नहीं जाना रहेगा,
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शेखर कुमावत
http://kavyawani.blogspot.com/

चित्तौडगढ। जम्मू कश्मीर के तकनीकी, शिक्षा मंत्री राजेन्द्रसिंह ने कहा कि प्रताप के तप की गूंज मेवाड ही नहीं, कश्मीर की वादियों तक है। महाराणा प्रताप को वहां भी ईश्वर के समान माना जाता है।

वे गुरूवार को जौहर स्मृति संस्थान की ओर से आयोजित जौहर श्रद्धांजलि समारोह में मुख्य अतिथि पद से बोल रहे थे। इस प्रकार के आयोजन से नई पीढी को हमारे इतिहास व पुरखों के बारे में जानने का मौका मिलता है।

सिंह ने जौहर भवन के लिए एक लाख रूपए भेंट किए। रेवास धाम के स्वामी राघवाचार्य ने कहा कि मातृभूमि की रक्षा के लिए वीरों का बलिदान एवं वीरांगनाओं का जौहर हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक हैं।

पूर्व सांसद महेन्द्रसिंह मेवाडा ने कहा कि व्यक्ति इन्सानियत के साथ संविधान के अनुरूप जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढने का प्रयास करें तो कामयाबी निश्चित मिलती है। उन्होंने समाज में एकता तथा शिक्षा पर जोर देने को कहा। समारोह में संस्थान अध्यक्ष उम्मेदसिंह धौली सहित संस्थान के कई पदाधिकारी मौजूद थे।

उमडा जन सैलाब

जौहर श्रद्धांजलि समारोह में भाग लेने के लिए अन्य राज्यों से भी सैकडों की संख्या में लोग यहां आए। ब"ाों से लेकर बुजुर्ग तक शोभा यात्रा में शामिल हुए तथा किले में जौहर स्थल पर यज्ञ में भाग लिया। कानून व्यवस्था के लिए बडी संख्या में पुलिस जाप्ता तैनात रहा। आगे केसरियां ध्वज लेकर घुडसवार चल रहे थे। पीछे की पंक्ति में सजेधजे ऊंट, मनमोहन झांकियां तथा नृत्य करते लोग शहर के बीच से निकले तो राहगीर भी ठिठक गए।

हर समाज की शिरकत

हर समुदाय ने शोभा यात्रा में शिरकत की। राजस्थान स्काउट व गाइड के करीब चालीस ब"ाों ने यात्रा में भाग लिया। उन्होंने व्यवस्थाओं को बनाने में भी सहभागिता दिखाई।

अम्बेडकर विचार मंच संस्थान के सदस्यो ने यात्रा में शामिल लोगों का माल्यार्पण व पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। शिवसेना के नगर शहर प्रमुख गोपाल वेद ने भी आगंतुकों का माल्यार्पण कर स्वागत किया। महाराणा भूपाल पब्लिक स्कूल एवं छात्रावास के विद्यार्थियों ने केसरियां धवज लेकर यात्रा में भाग लिया।

इनका हुआ सम्मान

जौहर स्मृति संस्थान की ओर से समारोह में समाज सेवक, प्रतिभावान छात्र-छात्रा, शिक्षक खिलाडियों को सम्मानित किया। इस अवसर पर चन्द्रभानसिंह आक्या, अभयसिंह शक्तावत, शंकरसिंह बडगूजर, खेतसिंह मेडतियां को भामाशाह पुरस्कार से सम्मानित किया। पर्यावरण संरक्षण के लिए दिव्या जैन को सम्मानित किया गया।

चोला तो रावण ने भी पहना

रेवास धाम सीकर के स्वामी राघवाचार्य वेदांती ने कहा कि चोला बदलने से कोई साधु नहीं बन सकता। चोला तो रावण ने भी पहना था।वे गुरूवार को राजस्थान पत्रिका से बातचीत कर रहे थे। एक सवाल के जवाब में वेदांती ने कहा कि वेष बदलने वाले ही साधु संतों को बदनाम कर रहे है। जिसने भी चाहा, साधु बन गया। इसी कारण लोगों में संतों के प्रति विश्वास घटता जा रहा है।

धर्म व राजनीति पर कहा कि धर्म का अर्थ सबके लिए न्याय है। जो तुम्हे अच्छा लगे, वैसा ही अन्य के लिए भी सोचो। यहीं धर्म की परिभाषा है। श्रेष्ठ जीवन मूल्य के साथ जीना धर्म है। इनकी उपेक्षा कर राजनीति करना समाज के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता। हिन्दू समाज के बिखराव पर वेदांती ने कहा कि हिन्दू समाज में अनेकों पंथ है।

'कश्मीरी पण्डितों का दो चरणों में पुनर्वास'

दूर रहता जरूर हंू पर अपने मेवाड के लिए सदैव समर्पित हूं। यह जमीन मेरे पूर्वजों की है इसलिए मैं यहां कोई मेहमान नहीं हूं। यह बात जम्मू-कश्मीर के तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा, खेल मंत्री राजेन्द्रसिंह चिब ने शुक्रवार को यहां सर्किट हाउस में राजस्थान पत्रिका से बातचीत में कही।

यहां जौहर श्रद्धांजलि समारोह में भाग लेने आए चिब ने बताया कि वह पहली बार यहां आए है। इससे पहले हर वर्ष समारोह में उनके बडे भाई स्व. बलदेवसिंह चिब आते थे। उसी परम्परा को निभाते हुए इस बार मैं खुद चित्तौड आया हूं।

चिब नेकहा कि राजस्थान के मेवाड का नाम पूरे विश्व में सम्मान के साथ लिया जाता है। भारत के इतिहास में चित्तौडगढ का इतिहास प्रभावशाली रहा है। एक सवाल के जवाब में चिब ने कहा कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुला ने कश्मीरी पंडितों को पुन कश्मीर में बसाने का कार्य शुरू कर दिया है। अब तक 20 प्रतिशत से अघिक कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास कर दिया गया है।

सरकार का जोर निर्वासित जीवन जी रहे पण्डितों को पुन: कश्मीर लाने पर है। यह कार्य दो चरणों में किया जा रहा है। पहला उन लोगों को उन्हें बसाया जा रहा है जिनके पूर्व में ही मकान आदि है। दूसरे चरण में उन पण्डितों को बसाया जा रहा है जिनकी कोई सम्पत्ति नहीं है। ऎसे लोगों के आवास की व्यवस्था कर उन्हें रोजगार देने का प्रयास किया जा रहा है।

धन्य-धन्य चित्तौड की धरा



चित्तौडगढ। जम्मू कश्मीर के तकनीकी, शिक्षा मंत्री राजेन्द्रसिंह ने कहा कि प्रताप के तप की गूंज मेवाड ही नहीं, कश्मीर की वादियों तक है। महाराणा प्रताप को वहां भी ईश्वर के समान माना जाता है।

वे गुरूवार को जौहर स्मृति संस्थान की ओर से आयोजित जौहर श्रद्धांजलि समारोह में मुख्य अतिथि पद से बोल रहे थे। इस प्रकार के आयोजन से नई पीढी को हमारे इतिहास व पुरखों के बारे में जानने का मौका मिलता है।

सिंह ने जौहर भवन के लिए एक लाख रूपए भेंट किए। रेवास धाम के स्वामी राघवाचार्य ने कहा कि मातृभूमि की रक्षा के लिए वीरों का बलिदान एवं वीरांगनाओं का जौहर हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक हैं।

पूर्व सांसद महेन्द्रसिंह मेवाडा ने कहा कि व्यक्ति इन्सानियत के साथ संविधान के अनुरूप जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढने का प्रयास करें तो कामयाबी निश्चित मिलती है। उन्होंने समाज में एकता तथा शिक्षा पर जोर देने को कहा। समारोह में संस्थान अध्यक्ष उम्मेदसिंह धौली सहित संस्थान के कई पदाधिकारी मौजूद थे।

उमडा जन सैलाब

जौहर श्रद्धांजलि समारोह में भाग लेने के लिए अन्य राज्यों से भी सैकडों की संख्या में लोग यहां आए। ब"ाों से लेकर बुजुर्ग तक शोभा यात्रा में शामिल हुए तथा किले में जौहर स्थल पर यज्ञ में भाग लिया। कानून व्यवस्था के लिए बडी संख्या में पुलिस जाप्ता तैनात रहा। आगे केसरियां ध्वज लेकर घुडसवार चल रहे थे। पीछे की पंक्ति में सजेधजे ऊंट, मनमोहन झांकियां तथा नृत्य करते लोग शहर के बीच से निकले तो राहगीर भी ठिठक गए।

हर समाज की शिरकत

हर समुदाय ने शोभा यात्रा में शिरकत की। राजस्थान स्काउट व गाइड के करीब चालीस ब"ाों ने यात्रा में भाग लिया। उन्होंने व्यवस्थाओं को बनाने में भी सहभागिता दिखाई।

अम्बेडकर विचार मंच संस्थान के सदस्यो ने यात्रा में शामिल लोगों का माल्यार्पण व पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। शिवसेना के नगर शहर प्रमुख गोपाल वेद ने भी आगंतुकों का माल्यार्पण कर स्वागत किया। महाराणा भूपाल पब्लिक स्कूल एवं छात्रावास के विद्यार्थियों ने केसरियां धवज लेकर यात्रा में भाग लिया।

इनका हुआ सम्मान

जौहर स्मृति संस्थान की ओर से समारोह में समाज सेवक, प्रतिभावान छात्र-छात्रा, शिक्षक खिलाडियों को सम्मानित किया। इस अवसर पर चन्द्रभानसिंह आक्या, अभयसिंह शक्तावत, शंकरसिंह बडगूजर, खेतसिंह मेडतियां को भामाशाह पुरस्कार से सम्मानित किया। पर्यावरण संरक्षण के लिए दिव्या जैन को सम्मानित किया गया।

चोला तो रावण ने भी पहना

रेवास धाम सीकर के स्वामी राघवाचार्य वेदांती ने कहा कि चोला बदलने से कोई साधु नहीं बन सकता। चोला तो रावण ने भी पहना था।वे गुरूवार को राजस्थान पत्रिका से बातचीत कर रहे थे। एक सवाल के जवाब में वेदांती ने कहा कि वेष बदलने वाले ही साधु संतों को बदनाम कर रहे है। जिसने भी चाहा, साधु बन गया। इसी कारण लोगों में संतों के प्रति विश्वास घटता जा रहा है।

धर्म व राजनीति पर कहा कि धर्म का अर्थ सबके लिए न्याय है। जो तुम्हे अच्छा लगे, वैसा ही अन्य के लिए भी सोचो। यहीं धर्म की परिभाषा है। श्रेष्ठ जीवन मूल्य के साथ जीना धर्म है। इनकी उपेक्षा कर राजनीति करना समाज के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता। हिन्दू समाज के बिखराव पर वेदांती ने कहा कि हिन्दू समाज में अनेकों पंथ है।

'कश्मीरी पण्डितों का दो चरणों में पुनर्वास'

दूर रहता जरूर हंू पर अपने मेवाड के लिए सदैव समर्पित हूं। यह जमीन मेरे पूर्वजों की है इसलिए मैं यहां कोई मेहमान नहीं हूं। यह बात जम्मू-कश्मीर के तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा, खेल मंत्री राजेन्द्रसिंह चिब ने शुक्रवार को यहां सर्किट हाउस में राजस्थान पत्रिका से बातचीत में कही।

यहां जौहर श्रद्धांजलि समारोह में भाग लेने आए चिब ने बताया कि वह पहली बार यहां आए है। इससे पहले हर वर्ष समारोह में उनके बडे भाई स्व. बलदेवसिंह चिब आते थे। उसी परम्परा को निभाते हुए इस बार मैं खुद चित्तौड आया हूं।

चिब नेकहा कि राजस्थान के मेवाड का नाम पूरे विश्व में सम्मान के साथ लिया जाता है। भारत के इतिहास में चित्तौडगढ का इतिहास प्रभावशाली रहा है। एक सवाल के जवाब में चिब ने कहा कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुला ने कश्मीरी पंडितों को पुन कश्मीर में बसाने का कार्य शुरू कर दिया है। अब तक 20 प्रतिशत से अघिक कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास कर दिया गया है।

सरकार का जोर निर्वासित जीवन जी रहे पण्डितों को पुन: कश्मीर लाने पर है। यह कार्य दो चरणों में किया जा रहा है। पहला उन लोगों को उन्हें बसाया जा रहा है जिनके पूर्व में ही मकान आदि है। दूसरे चरण में उन पण्डितों को बसाया जा रहा है जिनकी कोई सम्पत्ति नहीं है। ऎसे लोगों के आवास की व्यवस्था कर उन्हें रोजगार देने का प्रयास किया जा रहा है।

राष्ट्र रक्षा ही क्षत्रिय धर्म

कार्यालय संवाददात भास्कर

राष्ट्र रक्षा का धर्म ही क्षत्रिय धर्म है। चित्तौडग़ढ़ का इतिहास एक तरफ और पूरी दुनिया का इतिहास एक तरफ है। यह बात गुरुवार को दुर्ग स्थित फतहप्रकाश प्रांगण में जौहर स्मृति संस्थान की ओर से आयोजित जौहर श्रद्धांजलि समारोह में धर्मगुरू के रूप में रेवासा धाम सीकर के आचार्य जगदगुरू अग्रदेवाचार्य पीठाधीश्वर डा. स्वामी राघवाचार्य वेदांति ने कही।

उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप पूरी दुनिया के आदर्श है। समारोह में मुख्य अतिथि जम्मू कश्मीर के तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, युवा मामलात और खेल मंत्री राजेन्द्रसिंह चिब ने कहा कि भारत के इतिहास में मेवाड़ व राजस्थान के इतिहास की झलक नजर आती है। यहां की मिट्टी से तिलक करना नहीं भूल सकता। मेवाड़ राजघराने के महेन्द्रसिंह मेवाड़ ने कहा कि जो भी कदम उठाओ सोच समझकर उठाओ। विशिष्ट अतिथि के रूप में मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) विधायक प्रदीपकुमारसिंह ने कहा कि राजपूत राजनीति से अलग नहीं है। हम लकीर के फकीर नहीं बनकर आगे बढऩे के नए मापदंड तय करे।

इससे पूर्व समारोह में जौहर स्मृति संस्थान के अध्यक्ष उम्मेदसिंह धौली एवं पदाधिकारियों ने अतिथियों का माला पहना एवं स्मृति चिह्न भेंट कर स्वागत किया । समारोह में मेवाड़ राजघराने की निरूपमासिंह, नोबल ग्रुफ आफ स्कूल के निदेशक दलपतसिंह रूणिजा, महेंद्रसिंह कटोच, पीसीसी सदस्य गोपालकृष्ण शर्मा, धर्मेंद्र सिंह निमोता उपस्थित थे।

जौहर श्रद्धांजलि समारोह आज

भास्कर न्यूज & चित्

आन-बान, शान के लिए खुद को अग्नि समर्पित करने वाली वीरांगनाओं की याद में जौहर श्रद्धांजलि समारोह का आगाज गुरूवार को सुबह आठ बजे से शोभायात्रा से होगा।

जौहर स्मृति संस्थान की ओर से आयोजित समारोह के लिए दुर्ग स्थित फतहप्रकाश प्रांगण में भव्य मंच तथा पांडाल बनाया गया है। संस्थान के महामंत्री तेजपालसिंह शक्तावत ने बताया कि भीलवाड़ा मार्ग स्थित श्रीभूपाल राजपूत छात्रावास से शोभायात्रा शुरू होगी। जो वीर पूजा करते हुए सुबह 11 बजे दुर्ग स्थित जौहर स्थल पहुंचेगी। 11.30 बजे यज्ञ की पूर्णाहुति होगी। दोपहर 12.15 बजे मुख्य समारोह होगा।अध्यक्ष उम्मेदसिंह धौली ने बताया कि समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आमंत्रित किया गया है। वहीं धर्मगुरू के रूप में आचार्य जगदगुरू अग्रदेवाचार्य पीठाधीश्वर डा. स्वामी राघवाचार्य वेदांति रेवासा धाम सीकर उपस्थित रहेंगे।

मेवाड़ राजघराने के महेन्द्रसिंह मेवाड़ एवं निरूपमासिंह मौजूद रहेंगे। विशिष्ट अतिथि जम्मू कश्मीर के तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, युवा मामलात और खेल मंत्री राजेन्द्रसिंह चिब, राज्य के पर्यटन, कला संस्कृति, पुरातत्व विभाग के राज्यमंत्री राजेन्द्रसिंह गुढा, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष व सांसद डा. गिरिजा व्यास, राजसमंद सांसद गोपालसिंह ईडवा के अलावा चित्तौडग़ढ़ विधायक सुरेन्द्रसिंह जाड़ावत, मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) विधायक प्रदीपकुमारसिंह, नोबल ग्रुप आफ स्कूल के निदेशक दलपतसिंह रूणिजा, समाजसेवी नवलसिंह रत्नावत माधोराजपुरा फागी व नपाध्यक्ष गीतादेवी योगी होंगी। फतहप्रकाश महल प्रांगण में ही सम्मान समारोह भी होगा। शिवसेना नगर प्रमुख गोपाल वेद ने बताया कि शोभायात्रा का नेहरू बाजार शिवाजी चौक में स्वागत किया जाएगा।

ये होंगे सम्मानित

संस्थान के संयुक्त मंत्री कानसिंह सुवावा ने बताया कि रवीन्द्रसिंह शक्तावत, लक्ष्यराजसिंह, सुरेन्द्रसिंह, गजेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, भरतसिंह, दिलीपसिंह देवड़ा, अनुभवसिंह, जयक्षत्रियसिंह, दिनेशप्रतापसिंह, ललितसिंह, रतनसिंह सिंदवड़ी, महिपालसिंह, भक्त शिरोमणी मार्न पुरस्कार में डा. गायत्री शक्तावत, कणिका राठौड़, रेखाकंवर, रश्मि सक्सेना, तंवी सक्सेना, किश्मत चौहान, राजेश्वरी सिसोदिया, ज्योति शक्तावत, सीमाकंवर झाला, दीपशिखा कुमावत, कविताकुमारी चूंडावत, दिव्या जैन, अनिता कितावत, सुनयना भाटी, नीलम चौहान, शिक्षक महेन्द्रकुमार जैन, सुरेन्द्रसिंह चौहान, रामसिंह चूंडावत, खिलाड़ी महेन्द्रसिंह चौहान, सीमाकंवर झाला, रेखाकंवर, गजेन्द्रसिंह दौलतगढ़, दिलीपसिंह परिहार, धर्मेन्द्रसिंह मंदसौर, कानसिंह ओछड़ी, लक्ष्मणसिंंह चूंडावत, मदनसिंह सिसोदिया, लालसिंह, भभूतसिंह मुणवास, शंभूसिंह, लहरसिंह देवड़ा, हीरासिंह, मणिराजसिंह, हेमंत संत मराठा, बसंतीलाल पंचोली, भामाशाह सम्मान से चंद्रभानसिंह आक्या, अभयसिंह शक्तावत, शंकरसिंह बडगुजर, खेतसिंह मेडतियां को सम्मानित किया जाएगा।